ज़फरनामा फिर से गढ़ा जा रहा है। अनपढ़ औरंगज़ेब से कहाँ पढ़ा जा रहा है।उसे ऊंची आवाज़ मैं सुनाना भी पड़ेगा। और मतलब समझाना भी पड़ेगा। ये हिन्द की ज़मीं है। ना पहले थी। ना ज़ुल्म की अब कमी है। वक़्त हर ज़ालिम का सिमटता चला जायेगा। ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ेगा तो मिटता चला जायेगा। खून फिर खून है बहेगा तो रुकता चला जायेगा।