न बीजेपी की कब्र खुद रही है न कांग्रेस की ,",कब्र खुद चुकी है लोकतंत्र की,"असल में यह लड़ाई बिलो की वापसी की नहीं है, ये लड़ाई उस राजनीतिक व्यवस्था से है जो लोकतंत्र को बंधक बना चुकी है ,लोकतंत्र की अलग परिभाषा गढ़ी जा चुकी है ,जिसके समर्थन में सियारो की फोज खड़ी हैं जो हर किसी का शिकार करने के लिए आमादा है एक रंगा सियार दिल्ली से हुक्की हूं चिल्लाता है बस उसकी फोज गला फाड़कर नकल करना शुरू कर देती है ,चाहे किसी पार्टी की सत्ता रही हो प्रश्न पार्टियों का नहीं है,न ही ये पार्टी का खड़ा किया हुआ आंदोलन है ,नहीं तो कब का खत्म हो चुका होता , जो पार्टी आज समर्थन कर रही है वहीं कल बिल के विरोध में थी और आज जो पार्टी विरोध कर रही है वहीं कल समर्थन में थी ,सवाल उस दृष्टिकोण का है कि सत्ता में बैठकर सत्ताधीश जनता को किस दृष्टि से देखता है ,कैसे ऐसा कोई बिल संसद में पारित हो सकता है जिसके लिए न्यायालय में जाने तक की मनाही है ।कैसे ऐसा कोई बिल संसद में व्यापार के नाम पर पारित हो सकता है जिसके केंद्र में कृषि हो जबकि कृषि संबंधित कानून राज्य का विषय है ।कैसे राज्य सभा में बिना किसी बहस के ,बिना वोट किए कानून पारित किया जा सकता है ।कैसे विरोध की आवाज को कोरॉना के नाम पर दबाया जा रहा है ,कैसे Corona के नाम पर संसद बंद कर दी गई जबकि इसी Corona समय में ही ये तीनों बिल पास किए गए ।क्या किसी देश का प्रधानमंत्री ये बोल सकता है कि उसके देश की जनता गुमराह हो गई है ।कैसे संभव है कि गाड़ी के नीचे कुत्ते के पिल्ले के आ जाने पर दर्द दिखाने वाले देश के प्रधानमंत्री के मुंह से शहीद किसानो की लिए एक शब्द भी नहीं निकले ।कैसे ऐसा कोई बिल देश की संसद में पास हो सकता है जो ये घोषणा करता है कि अनाज, चावल, प्याज आज से आवश्यक वस्तु नहीं रही ।एक ऐसे समय में जब देश में विपक्ष न के बराबर है,सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने की कोई हिम्मत नहीं कर पा रहा है लोकतंत्र के सारे स्तंभ गिरा दिए गए हो लोकतंत्र को बचाने की जिम्मेदारी किसान ने उठाई है आज विपक्ष की भूमिका में किसान आकर खड़ा हो गया है ,इस आक्रोश को जितना जल्द समझेंगे उतना अच्छा होगा नहीं तो ये किसान आंदोलन इतिहास लिखने जा रहा है , ये लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है, किसानो के साथ खड़े हो जाइए नही तो कल जो होगा उसके जिम्मेदार केवल और केवल आप होंगे फैसला आपका लेना है क्योंकि देश आपका है