Sunday, 24 March 2024

#maa #mother मां के जाने के बाद मायके छूट जाते हैं मां नहीं है फिर भी मां की याद आती है, ठंड का मौसम होता था, बेफिक्र मां की शाल ओढ लिया करते थे, मां के साथ रजाई में छुप जाया करते थे, रजाई की गर्मी से अधिक मां का साथ अच्छा लगता था, सर्दी जाने कहां गुम हो जाती थी, पता ही नहीं चलता था, मां के साथ कुछ भी बात कर सकते थे, मां कभी बुरा नहीं मानती, बिना कहें बिना जाने सब कुछ जान जाती थी, अपनी मां को मां कहूं या जादूगर बिन मांगे सब कुछ पातें थे, पिता से बहुत कुछ सीखा, संयम, सीखने की शक्ति, माफ करने का गुण, वे कहा करते थे बोलने वाला अपना मुंह गंदा करता है, अपशब्द हमारे शरीर पर कहीं चिपक गए क्या, चिपक गए हो तो ढूंढ कर मुझे लौटा दो, हम हंस पड़ा करते थे, भूल जाओ वह इंसान ऐसा ही है, वह बदलने वाला नहीं खुद को बदल डालो, मां की साड़ी पहन जब मैं गुड़िया गुड़िया खेला करती थी मां साड़ी गंदी होने पर डाटा नहीं करती थी, प्यार किया करती थी, मेरी लाडो रानी ब्याह कर कहीं और चली, ऐसे मीठे संवाद कहती थी, कई वर्ष बीत गए उनसे बिछड़े हुए, उनसी ममता फिर कहीं मिली नहीं, बहुत चाहने वाले हैं फिर भी मां तो मां होती है, मेरे लिए तो सारा जहां थी, अल्प बचत करने का गुण उन्होंने सिखाया भविष्य में बड़ी बचत बनकर तुम्हारे काम आएगा, छोटी-मोटी बातें लेकिन महत्वपूर्ण कहा करती थी, वर्तमान नहीं भविष्य भी सवरेगा अगर मेरी बात पर ध्यान दोगे, मन में कोई स्वास्थ्य नहीं होता है, निस्वार्थ सिर्फ आपका भला चाहती है, पिता आसमान थे जिनकी छत्र छाया मे दुख कभी देखा नहीं, बहुत सौभाग्यशाली रही उन्हीं के हाथों मेरी डोली विदा हुई, जरा सी बात पर रूठ जाऊं तो दौड़ कर गले लगा लेती थी, क्या है क्या हुआ मेरी लाडो रानी चल तुझे कुछ दिलाऊ, मां तेरे हाथ के बने स्वेटर पहनकर बड़े हुए, फुर्सत में बैठना उन्हें पसंद नहीं होता था, कुछ ना कुछ किया करती थी, हर गुण था उन में तभी मुझे मोहब्बत थी उनसे, आज भी हैं, हमेशा रहेगी, अपनी मां का ही अंश हूं ,मां की ही परछाई खुद को कहती हूं..!!

Wednesday, 20 March 2024

रिश्ता _नहीं _सौदा _था. लडके के पिता ने पंडित जी को एक लडकी देखने को कहा ! पण्डित जी बोले हाँ एक लडकी है. अभी कुछ दिनों पहले उसके पिता ने भी एक लडका देखने को कहा था. एक दिन तय हुवा और शादी हो गयी. सब कुछ ठीक चल रहा था कि कुछ महीनो बाद. लडका लडकी मे आये दिन.झगडा होने लगा. वह लडका रोज नशे में घर आता और पत्नी से मारपीट करता वह उसे शारीरिक और मांसिक रूप से परेशान करता... वहीं बहू भी न सास देखती न ससुर अपने पति के जाते ही अपने स्कूल के एक मित्र के साथ फ़ोन पर लग जाती और भूल जाती की वह अब किसी की पत्नी किसी की बहू है. एक दिन उन दोनों के बीच झगडा शुरू हुआ और दोनों एक दूसरे पर आरोप लगाने लगे. गुस्से में आकर लडकी ने आत्महत्या कर ली. लडके को पुलिस ले गयी. अब दोनों घरो के लोग एक दूसरे को गाली देने लगे खानदान को गरियाने लगे मामला कोर्ट पहुंचा. जज सहाब ने सभी को उपस्थित रहने को कहा और उस पंडित को भी बुलाने को कहा जिसने रिश्ता करवाया था..... पंडित जी आये. वकील से पहले जज साहब ही पूछ बैठे ये रिश्ता तुम ने करवाया था.? दोनो घर बर्बाद हो गये. इन लोगों का कहना है की आपको सब पता था फ़िर भी.? पंडित जी ने कहा जज सहाब ये रिश्ता नहीं था. #सौदा था...... क्योंकि लडकी के माता पिता ने कहा.. लडका पैसे वाला हो परिवार छोटा हो. जमीन जायदाद हो. और सास ससुर न भी हो तो कोई बात नहीं... वही लडके के माँ बाप बोले. लडकी दिखने में सुन्दर हो खानदान हमारी बराबरी का हो. लडके को दहेज में गाडी मिले. बाकी हमे कोई सिकायत नहीं.. और मैने ये सौदा करवा दिया. साहब इसे रिश्ता नाम देकर. रिश्ते शब्द को अपमानित न करें. अगर इन लोगों को रिश्ता करवाना होता तो लडकी वाले मुझसे कहते... कि लडका बेशक गरीब हो मगर मेहनती हो भरा पूरा परिवार हो. ऐसा घर हो जहाँ मेरी बेटी हंस कर खिलखिलाकर रहे जिस घर में गाड़ी न हो मगर खुशी और संस्कार हो. वही लडका वाले कहते...... बहू बेशक गरीब घर की हो मगर संस्कार हो जो भरे पूरे परिवार से हो जो घर को घर बनाकर रखे. कुछ न हो देने के लिए मगर बडो का अदब और अतिथि का आदर सत्कार हो. बहू धनवान नहीं गुणवान हो. तब कहीं जाकर ये रिश्ता कहलाता जज साहब. और आजकल तो रिश्ते कम और सौदा अधिक होता है. इन के माता पिता भी बराबर के दोषी है इस तरह के मानसिकता वाले लोगों को जरूर सजा मिलनी चाहिए.. जज सहाब सोच में पड गये. बोले पंडित जी आपने मेरे हृदय में भी एक चुभन पैदा कर दी क्योंकि मैने भी अपने बच्चों को सब कुछ दिया आज का आधुनिक माहौल भी दिया. मगर संस्कार देने में शायद मै भी चूक गया....!!

Thursday, 7 March 2024

बाबूजी ने करवट बदली और खखारे, ज़ोर लगा कर लरज़ते सुर में बोले,बेटा! आठ मार्च तो कल ही है ना? मैंने झुंझलाहट में भरकर, लहजे में कुछ तेज़ी लाकर, कहा कि कितनी बार बताऊं। ये ही काम बचा है मेरा, टेप करा कर रख देता हूं, उसको ही तुम सुनते रहना, मेरा पीछा छोड़ो बाबा। आठ मार्च को क्या है ऐसा? क्या कोई जागीर मिलेगी? ख़ामोशी छा गई थी कुछ पल। पहले गीली आंखें पोंछीं, लहजे में फिर शहद घोल कर, सहमें सहमें आहिस्ता से, बोले मेरा जनम दिवस है, कल मैं पचहत्तर का हूंगा। ज़हरीले से सुर में मैंने,चुटकी लेते हुए कहा था, तुम्हें बुढ़ापे में भी बाबा, कितनी चाहत है जीने की,अरे ज़िन्दगी में से बाबा, एक साल कम हो जाएगा। बाबूजी फिर प्यार से बोले, बेटा जब तू बच्चा था ना, मेरी गोद में बैठ के तेरा, रोज़ाना का काम यही था, मेरा बर्डे कब है बाबा? तेरा माथा चूम के फिर में, रोज़ रोज़ ये बतलाता था। फिर हम दोनों, रोज़ाना ये प्लान बनाते, ग़ुब्बारे औ केक, खिलौने, डेकोरेशन कैसे होंगे? मैं तो कभी नहीं झुंझलाया, तेरे पास तो समझाने को मैं था बेटा। मेरे पास तो तू है बेटा। पचहत्तर का जब मैं हूंगा, ढाई सौ रुपए मेरी पिन्शन बढ़ जाएगी। मेरा चश्मा उतर गया है, ठीक दिखाई नहीं दे रहा, सोच रहा था, नम्बर लेकर बनवा लेंगे। तुझ पर क्यों कर बोझ बढ़ाऊं। मेरी ऐसी उम्र में बेटा बूढ़े बच्चे एक बराबर, तेरे भी तो दांत नहीं थे, मेरे भी अब दांत नहीं हैं, याददाश्त भी साथ नहीं है। एक बात ही बार बार तब तू भी पूछा करता था, एक बात ही बार बार अब मैं भी पूछा करता हूं। तेरे पास तो बाबूजी थे, मेरे पास तो तू है बेटा। तेरे पास तो बाबूजी थे, मेरे पास तो तू है बेटा। ~सलीम आफ़रीदी