Thursday 31 January 2019
Wednesday 30 January 2019
Tuesday 29 January 2019
Monday 28 January 2019
Sunday 27 January 2019
Saturday 26 January 2019
Friday 25 January 2019
Thursday 24 January 2019
एक बार मोमबत्ती के अंदर के धागे ने कहा, ”मैं जलता हूं तो, तू क्यों पिघलती है?” मोमबत्ती ने उत्तर दिया, ”जिसको दिल में जगह दी वो जब बिछड़ता है तो, आंसू खुद-ब-खुद निकल ही आते हैं.” एक बार शमा ने इर्द–गिर्द डोलते परवाने से कहा, ”मैं जलती हूं तो, तू मेरे साथ क्यों जलता है?” परवाने ने उत्तर दिया, ”जिसके साथ दिल लगाया वो ही जल जाए तो, मेरे रहने का कोई मकसद ही नहीं रहता है.” एक बार कमल के फूल ने भंवरे से पूछा ”क्यों डोलता है मेरे इर्द-गिर्द?” तुझे पता है कि, मैं सूरज के ओझल होते-होते बंद हो जाऊंगा भंवरे ने उत्तर दिया, ”जिसके साथ हो मन का डेरा उसीके भीतर ही रहूं तो अच्छा है, अन्यथा जीते रहने का कोई आनंद ही नहीं रहता है.”
Tuesday 22 January 2019
Monday 21 January 2019
Sunday 20 January 2019
Saturday 19 January 2019
Friday 18 January 2019
Thursday 17 January 2019
Tuesday 15 January 2019
Monday 14 January 2019
Saturday 12 January 2019
Friday 11 January 2019
Thursday 10 January 2019
Tuesday 8 January 2019
Monday 7 January 2019
हर इंसान दुसरो को बदलने में लगा हुआ है!खुद को बदलने का तो कोई विचार ही नही करता। :जलालुदीन रूमी : एक सूफी फकीर हुए। जब वो जवान थे तो खुदा से कहा मुझे इतनी ताकत दे कि दुनिया को बदल दूँ। खुदा ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर समय बीता। रूमी ने कहा खुदा इतनी ताकत दे कि मैं अपने बच्चों को बदल सकुं। फिर कोई जवाब नहीं मिला। रूमी जब बूढ़ा हो गया उसने कहा कि खुदा इतनी ताकत दे कि मैं खुद को बदल सकुं। तब खुदा ने कहा कि रूमी ये बात तो जवानी में पूछता तो कभी की क्रांति घट जाती। दुनिया में सबसे ज्यादा कलेश यही है, पत्नी अपने पति को बदलना चाहती है, पति अपनी पत्नी को, माँ बाप अपने बच्चों को,, बस इसी जद्दोजहद में जीवन बीत जाता है।पर कोई अपने आप को बदलना नहीं चाहता।۔۔۔
Sunday 6 January 2019
Saturday 5 January 2019
Friday 4 January 2019
Thursday 3 January 2019
Wednesday 2 January 2019
Indhan छोटे थे, माँ उपले थापा करती थी हम उपलों पर शक्लें गूँधा करते थे आँख लगाकर – कान बनाकर नाक सजाकर – पगड़ी वाला, टोपी वाला मेरा उपला – तेरा उपला – अपने-अपने जाने-पहचाने नामों से उपले थापा करते थे हँसता-खेलता सूरज रोज़ सवेरे आकर गोबर के उपलों पे खेला करता था रात को आँगन में जब चूल्हा जलता था हम सारे चूल्हा घेर के बैठे रहते थे किस उपले की बारी आयी किसका उपला राख हुआ वो पंडित था – इक मुन्ना था – इक दशरथ था बरसों बाद – मैं श्मशान में बैठा सोच रहा हूँ आज की रात इस वक्त के जलते चूल्हे में इक दोस्त का उपला और गया ! Gulzar
Tuesday 1 January 2019
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