Wednesday 27 July 2022

किसी घर में एकसाथ रहना परिवार नहीं कहलाता बल्कि एक साथ "जीना" एक दूसरे को "समझना" और एक दूसरे की "परवाह" करना "परिवार" कहलाता है..।

बिखरा हुआ समाज और बिखरा हुआ परिवार कभी भी बादशाह नहीं बन सकता लेकिन वह आपस में लड़कर दूसरों को बादशाह जरूर बना देता है "कड़वा" है पर "सत्य" "संगठित" रहें "एकत्रित" रहें..!

जरुरी नहीं की कुत्ता ही,वफादार निकले,वक़्त आने पर आपका वफादार भीकुत्ता निकल सकता है.

कभी सुनी सुनाई बात पर यकीन मत कीजिए, एक बात के तीन पहलू होते हैं..."आपका" "उनका" और "सच"।

Monday 25 July 2022

आप कितने भी अच्छे इंसान हो, फिर भी आप किसी न किसी की कहानी में बुरे होंगे। क्योंकि लोग हमेशा अपने स्वार्थ के अनुसार आपके बारे में सोचेंगे..।

एक बार एक राजा के राज्य में भयंकर महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग लगातार मरते रहे।दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा।तभी अचानक आकाशवाणी हुई।आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है । अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक - एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा ।राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है। अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था, ठीक उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे ही इसलिए अगर मै अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया।अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछभी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कंआ पानी से भरा हुआ है । दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं। दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था ,वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।...............दोस्तों.... जैसा इस कहानी में हुआ ठीक वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जब भी कोई ऐसा बड़ा काम आता है जिसमें बहुत सारे लोगों की सहयोगिता की ज़रूरत होती है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो यह कार्य कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं। अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो हर समस्या का समाधान मुमकिन है ।

Thursday 21 July 2022

जरूरी नहीं की अच्छी बातें करने वाला हर इंसान अच्छा हो, आज कल साजिश रचने वाले भी बहुत मीठा बोलते हैं..।

एक सहन करने वाला ही समझ सकता है, कि उसे तकलीफ कितनी है। दूसरे तो बस उसके बारे में अनुमान ही लगा सकते हैं..।

जरूरत से ज्यादा चालाकी और निश्छल व्यक्ति के साथ किया गया छल आपकी बर्बादी के सभी द्वार खोल देता है। फिर चाहें आप कितने भी बड़े शतरंज के धूर्त खिलाड़ी ही क्यों ना हों।

एक सहन करने वाला ही समझ सकता है, कि उसे तकलीफ कितनी है। दूसरे तो बस उसके बारे में अनुमान ही लगा सकते हैं..।

Monday 11 July 2022

परमात्मा तुम्हारे बिना भी परमात्मा ही है..पर तुम बिना परमात्मा के कुछ भी नही.

*एक बहुत बड़े दानवीर हुए रहीम । उनकी ये एक खास बात थी के जब वो दान देने के लिए हाथ आगे बढ़ाते तो अपनी नज़रें नीचे झुका लेते थे।* *ये बात सभी को अजीब लगती थी कि ये रहीम कैसे दानवीर है*ये दान भी देते है और इन्हें शर्म भी आती है ।ये बात जब कबीर जी तक जब पहुंची तो उनोहने रहीम को चार पंक्तिया लिख कर भेजी जिसमे लिखा था* -*ऐसी देनी देन जु *कित सीखे हो सेन**ज्यों ज्यों कर ऊंचो करें* *त्यों त्यों नीचे नैन ।**इसका मतलब था के रहीम तुम ऐसा दान देना कहाँ से सीखे हो जैसे जैसे तुम्हारे हाथ ऊपर उठते है वैसे वैसे तुम्हारी नज़रें तुम्हारे नैन नीचे क्यू झुक जाते है* ।*रहीम ने इसके बदले मे जो जवाब दिया वो जवाब इतना गजब का था कि जिसने भी सुना वो रहीम का भक्त हो गया इतना प्यारा जवाब आज तक किसी ने किसी को नही दिया । रहीम ने जवाब में लिखा**देंन हार कोई और है* *भेजत जो दिन रैन**लोग भरम हम पर करें* *तासो नीचे नैन ।।* *मतलब देने वाला तो कोई और है वो मालिक है वो परमात्मा है वो दिन रात भेज रहा है । परन्तु लोग ये समझते है के मै दे रहा हु, रहीम दे रहा है, ये विचार कर मुझे शर्म आ जाती है और मेरी आँखे नीचे झुक जाती है*