Sunday 7 May 2023

*अनजान से आत्मिक स्नेह*"अम्मा!.आपके बेटे ने मनीआर्डर भेजा है।"डाकिया बाबू ने अम्मा को देखते अपनी साईकिल रोक दी। अपने आंखों पर चढ़े चश्मे को उतार आंचल से साफ कर वापस पहनती अम्मा की बूढ़ी आंखों में अचानक एक चमक सी आ गई.."बेटा!.पहले जरा बात करवा दो।"अम्मा ने उम्मीद भरी निगाहों से उसकी ओर देखा लेकिन उसने अम्मा को टालना चाहा.."अम्मा!. इतना टाइम नहीं रहता है मेरे पास कि,. हर बार आपके बेटे से आपकी बात करवा सकूं।"डाकिए ने अम्मा को अपनी जल्दबाजी बताना चाहा लेकिन अम्मा उससे चिरौरी करने लगी.."बेटा!.बस थोड़ी देर की ही तो बात है।""अम्मा आप मुझसे हर बार बात करवाने की जिद ना किया करो!"यह कहते हुए वह डाकिया रुपए अम्मा के हाथ में रखने से पहले अपने मोबाइल पर कोई नंबर डायल करने लगा.."लो अम्मा!.बात कर लो लेकिन ज्यादा बात मत करना,.पैसे कटते हैं।"उसने अपना मोबाइल अम्मा के हाथ में थमा दिया उसके हाथ से मोबाइल ले फोन पर बेटे से हाल-चाल लेती अम्मा मिनट भर बात कर ही संतुष्ट हो गई। उनके झुर्रीदार चेहरे पर मुस्कान छा गई।"पूरे हजार रुपए हैं अम्मा!"यह कहते हुए उस डाकिया ने सौ-सौ के दस नोट अम्मा की ओर बढ़ा दिए।रुपए हाथ में ले गिनती करती अम्मा ने उसे ठहरने का इशारा किया.."अब क्या हुआ अम्मा?""यह सौ रुपए रख लो बेटा!" "क्यों अम्मा?" उसे आश्चर्य हुआ।"हर महीने रुपए पहुंचाने के साथ-साथ तुम मेरे बेटे से मेरी बात भी करवा देते हो,.कुछ तो खर्चा होता होगा ना!""अरे नहीं अम्मा!.रहने दीजिए।"वह लाख मना करता रहा लेकिन अम्मा ने जबरदस्ती उसकी मुट्ठी में सौ रुपए थमा दिए और वह वहां से वापस जाने को मुड़ गया। अपने घर में अकेली रहने वाली अम्मा भी उसे ढेरों आशीर्वाद देती अपनी देहरी के भीतर चली गई।वह डाकिया अभी कुछ कदम ही वहां से आगे बढ़ा था कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा..उसने पीछे मुड़कर देखा तो उस कस्बे में उसके जान पहचान का एक चेहरा सामने खड़ा था।मोबाइल फोन की दुकान चलाने वाले रामप्रवेश को सामने पाकर वह हैरान हुआ.. "भाई साहब आप यहां कैसे?. आप तो अभी अपनी दुकान पर होते हैं ना?""मैं यहां किसी से मिलने आया था!.लेकिन मुझे आपसे कुछ पूछना है।" रामप्रवेश की निगाहें उस डाकिए के चेहरे पर टिक गई.."जी पूछिए भाई साहब!""भाई!.आप हर महीने ऐसा क्यों करते हैं?""मैंने क्या किया है भाई साहब?" रामप्रवेश के सवालिया निगाहों का सामना करता वह डाकिया तनिक घबरा गया।"हर महीने आप इस अम्मा को भी अपनी जेब से रुपए भी देते हैं और मुझे फोन पर इनसे इनका बेटा बन कर बात करने के लिए भी रुपए देते हैं!.ऐसा क्यों?"रामप्रवेश का सवाल सुनकर डाकिया थोड़ी देर के लिए सकपका गया!. मानो अचानक उसका कोई बहुत बड़ा झूठ पकड़ा गया हो लेकिन अगले ही पल उसने सफाई दी.."मैं रुपए इन्हें नहीं!.अपनी अम्मा को देता हूंँ।""मैं समझा नहीं?"उस डाकिया की बात सुनकर रामप्रवेश हैरान हुआ लेकिन डाकिया आगे बताने लगा..."इनका बेटा कहीं बाहर कमाने गया था और हर महीने अपनी अम्मा के लिए हजार रुपए का मनी ऑर्डर भेजता था लेकिन एक दिन मनी ऑर्डर की जगह इनके बेटे के एक दोस्त की चिट्ठी अम्मा के नाम आई थी।"उस डाकिए की बात सुनते रामप्रवेश को जिज्ञासा हुई.."कैसे चिट्ठी?.क्या लिखा था उस चिट्ठी में?""संक्रमण की वजह से उनके बेटे की जान चली गई!. अब वह नहीं रहा।""फिर क्या हुआ भाई?" रामप्रवेश की जिज्ञासा दुगनी हो गई लेकिन डाकिए ने अपनी बात पूरी की.."हर महीने चंद रुपयों का इंतजार और बेटे की कुशलता की उम्मीद करने वाली इस अम्मा को यह बताने की मेरी हिम्मत नहीं हुई!.मैं हर महीने अपनी तरफ से इनका मनीआर्डर ले आता हूंँ।""लेकिन यह तो आपकी अम्मा नहीं है ना?""मैं भी हर महीने हजार रुपए भेजता था अपनी अम्मा को!. लेकिन अब मेरी अम्मा भी कहां रही।" यह कहते हुए उस डाकिया की आंखें भर आई।हर महीने उससे रुपए ले अम्मा से उनका बेटा बनकर बात करने वाला रामप्रवेश उस डाकिया का एक अजनबी अम्मा के प्रति आत्मिक स्नेह देख नि:शब्द रह गया ।आज मानव के पास अति आधुनिक जीवन जीने की हजारों कल्पनायें है, पर जीने के लिए उसकी यह कल्पनायें क्या उसे कोई सुख का अनुभव दे रही है ? मानव, वर्तमान के सुख से अनजान होकर, अपने अनिश्चित भविष्य की तलाश में प्राप्त सुख की गरिमा भूल जाता है, और दुखी जीवन व्यतीत करने लगता है। यद्यपि भारतीय जीवन दर्शन में अर्थ को तीसरा सुख जरुर माना, परन्तु ह्रदय से नहीं, मजबूरी से, क्योंकि साधनों से जीवन को गति मिलती है, और नियमित जीवन को लय मे रखने से ही जीवन अपने लक्ष्य की तरफ अग्रसर हो सकता है, इसे हम इस युग की जरुरत कह सकते है। ऐसे ही स्नेह, वात्सल्य की भावना है, किसी स्त्री का अपने पुत्र के प्रति जो लगाव या प्यार है, उसे स्नेह शब्द से निरूपित कर सकते है। मेरा मानना है कि अनजान व्यक्ति से आत्मीयता दर्शाने से अनदेखे,अनकहे सुख की अनुभूति होती है। एक बार आप भी प्रयास करके देखिए..!! सुप्रभात दोस्तों. 🙂🙂जय श्री राधेश्याम 🌹🙏🌹#beautifullife #Hindistory

Thursday 4 May 2023

वृद्धाश्रम के दरवाजे पर रोज एक कार आकर लगती थी। उस कार में से एक नौजवान उतरता और एक बुढ़ी महिला के पास जाकर बैठ जाता। एक आध घंटे तक दोनों के बीच कुछ वार्तालाप चलती फिर वह उठकर चला जाता। यह प्रक्रिया अनवरत चल रही थी। धीरे-धीरे सबको पता चल गया कि बुढ़ी महिला उस नौजवान की माँ हैं। आज फिर वह सुबह से आकर बैठा था और बार -बार माँ के पैर पकड़ माफ़ी मांग रहा था। दूर बैठे वृद्धाश्रम के गेट कीपर को रहा नहीं गया वह एक बुजुर्ग से बोला-" लोग कहते हैं कि औलाद की नीयत बदल जाती है पर यहाँ का दृश्य तो कुछ और ही कह रहा है। "बुजुर्ग ने कहा-" ऐसा नहीं है भाई कि जो तुम्हारी आँखें देख रही हो वह सही हो। कोई बात तो जरूर होगी तभी लोग वृद्धाश्रम के दरवाजे तक आते हैं। " जब वह चला गया तो दरबान उस बुजुर्ग महिला के पास पहुंचा। हाल- चाल पूछने के क्रम में वह पूछ बैठा- -"ताई आपसे मिलने जो लड़का आता है वह आपका बेटा है न!"बुढ़ी थोड़ी सकुचाते हुए हाँ में सिर हिलाकर चुप हो गईं। दरबान आगे बात बढ़ाते हुए बोला -"ताई बड़ा भला है आपका बेटा। कितनी मिन्नतें करता है। क्या आपको यहां से ले जाना चाहता है?"बुढ़ी महिला ने एक बार फिर हाँ में सिर हिलाया। तब तक कुछ और बुजुर्ग महिला पुरुष उन दोनों के इर्द-गिर्द आकर खड़े हो गए। एक बुजुर्ग ने अपने को अनुभवी साबित करते हुए कहा-" कहते हैं कि औरत वसुधा की तरह धैर्यवान होती है। लेकिन आपको देखकर ऐसा नहीं लगता है। " बुजुर्ग महिला सबकी बातें सुन रही थी पर किसी को कोई जबाव नहीं दिया । एक ने कहा-" अब जमाना बदल गया है भाई सहनशीलता बीते दिनों की बात हो गई अब महिला और पुरुष में कोई अन्तर नहीं है। सबको आजादी चाहिए। किसी को माँ बाप से और किसी को अपने बच्चों से! "पुरुष की अंतिम वाक्य सुनकर बुजुर्ग महिला की आँखें भर आईं। फिर भी कुछ नहीं बोला उन्होंने। अगले दिन फिर कार आकर खड़ी हो गई वृद्धाश्रम के दरवाजे पर। इस बार उस नौजवान के साथ एक महिला अपने गोद में एक छोटे बच्चे को लेकर खड़ी थी। दोनों एक साथ सामने मिन्नतें करने लगे। महिला ने अपने बच्चे को उनकी गोद में रख दिया और पांव पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोली-" माँजी हम दोनों को माफ कर दीजिये और अपने घर चलिये। आपको अपने पोते की कसम!" दरबान को रहा नहीं गया बोला-" बेटा तुम्हारी माँ नहीं जाना चाहती तो क्यूँ जबरदस्ती ले जाना चाहते हो। तुम लोग जैसे औलाद भगवान सबको दे। वर्ना आजकल के बच्चे जानबूझकर माँ बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ जाते हैं। " इस बार बुजुर्ग महिला का धर्य टूट गया आंखों से आंसुओं की धारा बह चली। अपने आंचल से आंसुओं को रोकते हुए बोलीं-" आप शायद नहीं जानते दरबान जी! पति के दुनिया से जाते ही मेरा सारा जमा पूंजी इनलोगों ने ले लिया। रोज एक रोटी के लिए मुझे घन्टों इंतजार करना पड़ता था। खड़ी खोटी सुनाकर रात -रात भर खून के आंसू रुलाया है इनलोगों ने। अंत में मुझे घर से चले जाने को कहा। आप सब बताईये की मैं कहां जाती। आज भी कोई माफी मांगने🌹🌹🌹🌹🌹 नहीं आये हैं ये लोग दरअसल इन्हें बच्चे को सम्भालने के लिए एक आया चाहिए इसीलिए यह नाटक आपके सामने दिखा रहे हैं। #sanskar

कटी हुई टहनियाँ भी कहाँ “छाँव” देती हैं,हद से ज़्यादा उम्मीदें हमेशा “घाव” देती हैं!

डाली से पत्ता टूटकर गिरा है, या रूठकर..कौन जानता है?

वो किताबों में दर्ज था ही नहीं.. सिखाया जो सबक ज़िंदगी ने।

कभी भी किसी को भला बुरा कहने से पहले यह अवश्य सोच ले कि यदि वही शब्द कोई आपसे कहे तो आपको कैसा प्रतीत होगा।

Monday 1 May 2023

जो इंसान स्वार्थ वश ही आपसे जुड़ा हुआ है, वो लम्बी रेस का घोड़ा नही बन सकता। इसलिए ऐसे लोगो को त्यागना ही श्रेष्ठ है।

क्रोधमें भी शब्दों का चुनाव ऐसा होना चाहिए कि कल जब गुस्सा उतरें तो खुद की नजरों में शर्मिंदा न होना पड़े

जन्म और मृत्यु अब महंगे हो गए हैं, सिजेरियन के बिना कोई आता नही और वेंटीलेटर के बिना कोई जाता नही..

जो लोग “दिल” के अच्छे होते हैं, “दिमाग” वाले लोग उनका जम कर फायदा उठाते हैं।

जन्म और मृत्यु अब महंगे हो गए हैं, सिजेरियन के बिना कोई आता नही और वेंटीलेटर के बिना कोई जाता नही..

ज़िन्दगी में कुछ भी परमानेंट नहीं है।जो आज है कल शायद ना हो क्या पता ।