"जब इंसान को हद से ज़्यादा तकलीफ़ मिल जाती है, तो उसके भीतर की मोह-माया धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। और जब मोह समाप्त हो जाता है, तो खोने का डर भी दिल से निकल जाता है। फिर चाहे वह धन-दौलत हो, रिश्ते हों, वस्तुएँ हों, या फिर स्वयं जीवन ही क्यों न हो - कुछ भी खोने का भय नहीं रह जाता।