"ये गृहणियाँ भी थोड़ी पागल होती हैं"-----------------------------------------------सलीके से आकार दे कररोटियों को गोल बनाती हैंऔर अपने शरीर को हीआकार देना भूल जाती हैंये गृहणियाँ भीथोड़ी पागल सी होती हैं।।ढेरों वक्त़ लगा कर घर काहर कोना कोना चमकाती हैंउलझी बिखरी ज़ुल्फ़ों कोज़रा सा वक्त़ नही दे पाती हैंये गृहणियाँ भीथोड़ी पागल सी होती हैं।।किसी के बीमार होते हीसारा घर सिर पर उठाती हैंकर अनदेखा अपने दर्दसब तकलीफ़ें टाल जाती हैंये गृहणियाँ भीथोड़ी पागल सी होती हैं ।।खून पसीना एक करसबके सपनों को सजाती हैंअपनी अधूरी ख्वाहिशें सभीदिल में दफ़न कर जाती हैंये गृहणियाँ भीथोड़ी पागल सी होती हैं।।सबकी बलाएँ लेती हैंसबकी नज़र उतारती हैंज़रा सी ऊँच नीच हो तोनज़रों से उतर ये जाती हैंये गृहणियाँ भीथोड़ी पागल सी होती हैं।।एक बंधन में बँध करकई रिश्तें साथ ले चलती हैंकितनी भी आए मुश्किलेंप्यार से सबको रखती हैंये गृहणियाँ भीथोड़ी पागल सी होती हैं।।मायके से सासरे तकहर जिम्मेदारी निभाती हैकल की भोली गुड़िया रानीआज समझदार हो जाती हैंये गृहणियाँ भी.....वक्त़ के साथ ढल जाती हैं।।Author: Unknown