वृद्धाश्रम के दरवाजे पर रोज एक कार आकर लगती थी। उस कार में से एक नौजवान उतरता और एक बुढ़ी महिला के पास जाकर बैठ जाता। एक आध घंटे तक दोनों के बीच कुछ वार्तालाप चलती फिर वह उठकर चला जाता। यह प्रक्रिया अनवरत चल रही थी। धीरे-धीरे सबको पता चल गया कि बुढ़ी महिला उस नौजवान की माँ हैं। आज फिर वह सुबह से आकर बैठा था और बार -बार माँ के पैर पकड़ माफ़ी मांग रहा था। दूर बैठे वृद्धाश्रम के गेट कीपर को रहा नहीं गया वह एक बुजुर्ग से बोला-" लोग कहते हैं कि औलाद की नीयत बदल जाती है पर यहाँ का दृश्य तो कुछ और ही कह रहा है। "बुजुर्ग ने कहा-" ऐसा नहीं है भाई कि जो तुम्हारी आँखें देख रही हो वह सही हो। कोई बात तो जरूर होगी तभी लोग वृद्धाश्रम के दरवाजे तक आते हैं। " जब वह चला गया तो दरबान उस बुजुर्ग महिला के पास पहुंचा। हाल- चाल पूछने के क्रम में वह पूछ बैठा- -"ताई आपसे मिलने जो लड़का आता है वह आपका बेटा है न!"बुढ़ी थोड़ी सकुचाते हुए हाँ में सिर हिलाकर चुप हो गईं। दरबान आगे बात बढ़ाते हुए बोला -"ताई बड़ा भला है आपका बेटा। कितनी मिन्नतें करता है। क्या आपको यहां से ले जाना चाहता है?"बुढ़ी महिला ने एक बार फिर हाँ में सिर हिलाया। तब तक कुछ और बुजुर्ग महिला पुरुष उन दोनों के इर्द-गिर्द आकर खड़े हो गए। एक बुजुर्ग ने अपने को अनुभवी साबित करते हुए कहा-" कहते हैं कि औरत वसुधा की तरह धैर्यवान होती है। लेकिन आपको देखकर ऐसा नहीं लगता है। " बुजुर्ग महिला सबकी बातें सुन रही थी पर किसी को कोई जबाव नहीं दिया । एक ने कहा-" अब जमाना बदल गया है भाई सहनशीलता बीते दिनों की बात हो गई अब महिला और पुरुष में कोई अन्तर नहीं है। सबको आजादी चाहिए। किसी को माँ बाप से और किसी को अपने बच्चों से! "पुरुष की अंतिम वाक्य सुनकर बुजुर्ग महिला की आँखें भर आईं। फिर भी कुछ नहीं बोला उन्होंने। अगले दिन फिर कार आकर खड़ी हो गई वृद्धाश्रम के दरवाजे पर। इस बार उस नौजवान के साथ एक महिला अपने गोद में एक छोटे बच्चे को लेकर खड़ी थी। दोनों एक साथ सामने मिन्नतें करने लगे। महिला ने अपने बच्चे को उनकी गोद में रख दिया और पांव पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोली-" माँजी हम दोनों को माफ कर दीजिये और अपने घर चलिये। आपको अपने पोते की कसम!" दरबान को रहा नहीं गया बोला-" बेटा तुम्हारी माँ नहीं जाना चाहती तो क्यूँ जबरदस्ती ले जाना चाहते हो। तुम लोग जैसे औलाद भगवान सबको दे। वर्ना आजकल के बच्चे जानबूझकर माँ बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ जाते हैं। " इस बार बुजुर्ग महिला का धर्य टूट गया आंखों से आंसुओं की धारा बह चली। अपने आंचल से आंसुओं को रोकते हुए बोलीं-" आप शायद नहीं जानते दरबान जी! पति के दुनिया से जाते ही मेरा सारा जमा पूंजी इनलोगों ने ले लिया। रोज एक रोटी के लिए मुझे घन्टों इंतजार करना पड़ता था। खड़ी खोटी सुनाकर रात -रात भर खून के आंसू रुलाया है इनलोगों ने। अंत में मुझे घर से चले जाने को कहा। आप सब बताईये की मैं कहां जाती। आज भी कोई माफी मांगने🌹🌹🌹🌹🌹 नहीं आये हैं ये लोग दरअसल इन्हें बच्चे को सम्भालने के लिए एक आया चाहिए इसीलिए यह नाटक आपके सामने दिखा रहे हैं। #sanskar