"सुकून की दौलत ....सवारियो के इंतजार मे आटो स्टैण्ड पर अपने आटो में बैठा मोहन.. बाजू के आटो में बैठे दीनू चाचा से बातें कर रहा था... कया बात है मोहन... आज तो तेरे चेहरे पर एक अलग ही मुसकान है....अरे चाचा.... आपको पता है कल रात मैंने एक मन के सुकून का काम किया.....मुझे सुकून की दौलत मिली...दीनू चाचा-कया...सुकून की दौलत... अरे हमें भी तो पता चले ...हमारे छोटे ने कया सुकून भरा काम किया .....और उसे कैसे सुकुन की दौलत मिली...क्या किसी बडे मंत्रीजी को आटो में बैठाकर शहर में घुमाया या किसी फिल्मी एक्टर को अपने आटो में बैठाया........अरे....नहीं चाचा...मैंने लोभ, लालच और बेईमानी को हराकर, ईमानदारी का परचम लहराया, एक गरीब और मजबूर परिवार को होनेवाले बहुत बड़े नुकसान से बचाया...दीनू चाचा - क्या कह रहा है छोटे....ऐसा क्या किया तूने...तो मोहन बोला..चाचा कल रात मैं रोज की तरह लगभग ग्यारह बजे सवारियो का इंतजार कर रहा था कि एक महिला और एक 12-13 साल का लड़का, जिनके पास दो-तीन झोले, चादर, कंबल, एक पानी की केन, स्टोव आदि बहुत सा सामान था, बस से उतरकर सीधे मेरे पास आये और बोले, भैया सिटी हास्पिटल चलोगे...मैंने बोला हां चलो, उन्होंने आटो में फटाफट अपना सामान रखा और खुद भी बैठ गये हम लोग 15-20 मिनिट में सिटी हास्पिटल पहुंच गये वे दोनों आटो से उतरे और जल्दी-जल्दी अपना सामान उठाया और सीधे हास्पिटल के अंदर चले गये। और मैं भी आटो लेकर बारह बजे वाली बस की सवारियों के लिये वापस बस स्टैण्ड आ गया...स्टैण्ड पर आटो खड़ा कर, सोचा पीछे की सीट पर थोड़ा लेट जाता हूं, पीछे गया तो देखा सीट के पीछे एक नीले रंग की पन्नी में कुछ बंधा हुआ पड़ा है, खोलकर देखा तो उसमें पांच-पांच सौ के नोटों की दो गड्डियां थी... साठ सत्तर हजार से कम नहीं रहे होंगे...एकपल को तो मुझे लगा, यार आज तो लॉटरी लग गयी है शाम से सवारियों ले जा रहा हूं कोई पूछने भी नहीं आया मन में आया कि इन पैसों को मैं ही रख लेता हूं, फिर थोड़ी देर सोच-विचार किया तो मुझे लगा कहीं ये पैसे अभी हास्पिटल जानेवाली महिला और उसके साथवाले लड़के के तो नही.. यही सोचकर मैंने, तुरंत आटो स्टार्ट किया और सिटी हास्पिटल चला गया और वहां उस महिला और लड़के को ढूंढने लगा, तो देखा वे दोनों वहीं बाहर ही शेड के नीचे बैठे फूट-फूट कर रो रहे थे...मैंने पूछा तो वह महिला कहने लगी, भैया हम लोग दूर गांव से आये है मेहनत-मजूरी करके जीवन यापन करते है मेरे पति यहां भर्ती हैं, उनके ब्रेन ट्यूमर का आप्रेशन होना है गांव में पैतृक जमीन का आधे एकड़ का टुकड़ा था, उसे बेचकर आप्रेशन के लिये पैसे लाये थे गांव से चले तो पैसे मेरे पास ही इस छोटे झोले में ही रखे थे, पर यहां आकर देखा तो पैसे की पन्नी है ही नहीं समझ ही नहीं आ रहा कि पैसे कहां चले गये... मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं भैया, डॉक्टर कहते हैं कि पति का आप्रेशन नहीं होगा तो उनकी जान का खतरा हैं.....ना जाने पैसे कहां गिर गये कहकर वह लगातार रोये जा रही थी...मैंने बोला आप चिंता मत करो...रामजी की दया से सब ठीक हो जायेगा....अच्छा बताओ पन्नी किस रंग की थी, वह बोली भैया नीले रंग की पन्नी थी और पांच-पांच सौ के नोटों की दो गड्डियां थी पूरे सत्तर हजार रूपये थे भैया....मैंने जेब से पन्नी निकाली और बोला यह लो तुम्हारे पैसे जल्दी-जल्दी में मेरे आटो में सीट के पीछे गिर गये थे...पैसे लेकर उस महिला के जान में जान आई पन्नी खोलकर मुझे दो हजार रूपये देने लगी, बोली यह रख लो भैया... मैंने बोला नहीं-नहीं इसकी कोई जरूरत नहीं यह आपका पैसा है आप शांति से अपने पति का इलाज कराओ, सब ठीक हो जायेगा... मैं लौटने लगा तो वह महिला मेरे पैर पड़ने लगी मैंने उसे मना किया और वापस आ गया।दीनू चाचा बोले... वाह......छोटे तूने वाकई बहुत अच्छा काम किया बेटा, आज जबकि समाज में कई लोग हजार-पांच सौ के लिये अपना ईमान बेच देते हैं, इतनी बड़ी रकम पाकर भी तूने अपना ईमान डिगने नहीं दिया, बहुत बढ़िया छोटे...बेटा सच्चाई, ईमानदारी और संतोष से बढ़कर कोई दौलत नहीं है ...ईमानदारी की एक नेक पहल किसी का जीवन संवार सकती है और एक बेईमानी किसी का जीवन तबाह कर सकती है बेईमानी से हमें क्षणिक सुख भले मिल जाये, पर उसका अंत हमेशा दुखद ही होता है...छोटे, मुझे तुझ पर गर्व है बेटा...दीनू चाचा के मुंह से ये सुनकर मोहन का चेहरा और भी खिल उठाएक सुंदर रचना...#दीप...🙏🙏🙏