रिश्तों को निभाने के समय किसी के आगे इतना मत झुको कि उठते वक्त सहारे की जरुरत पड़े*
क्योंकि जो आपको झुका रहा है वो आपको उठने में कभी मदद नहीं करेगा और
*जो रिश्तों को झुकाने में विश्वास करता है वो कभी रिश्तों को निभाने में विश्वास नहीं कर सकता।*
ऐसे रिश्ते को उनके हाल पर छोड़ देना या समय को प्रतिकूल जानकर शांत बैठ जाना ही अच्छा है।
*कोई अपना है या हम किसी के हों क्या फर्क पड़ता है*
अपना वही है जो हर हाल में आपको आगे बढ़ाता है
जो पीछे धकेल रहा है वो कभी आपका नहीं हो सकता है।