यदि मनुष्य सीखना चाहे तो प्रकृति से बहुत कुछ सीख सकता है,और सारी प्रकृति से ही क्यो, एक वृक्ष से ही बहुत कुछ सीख सकता है, बस सीखने की सोच होना चाहिए।
एक वृक्ष खड़ा रहता है, गर्मी, सर्दीऔर बरसात में भी,अचल, अटल। बहुत सी आँधियों और तूफानो का सामना भी करता है।
और सोच ... कभी नही सोचता कितने फूल उगाये उसने, कितने फल खिलाये उसने, कितने काट ले गये उसको।
फिर भी लगा रहता है, एक नये सृजन के लिए।
अपनी उन्हीं शाखाओ और पत्तियो के साथ जो शेष बची है।
कभी अफसोस नहीं करता कि पहले मै ऐसा हुआ करता था, पहले मै बैसा हुआ करता था।
न कोई घमंड न कोई पाश्याताप ।
तो सीख लो उससे हे प्राणी बहुत कुछ है सीखने को,
हर वक्त तेरी ये शिकायत ,कोई मिला नही सिखाने वाला ,कोई मिला नही आदर्श दिखाने वाला।
ये बहाने है तुम्हारे।
सीख तो तुम्हें एक पत्ता भी दे सकता है। वृक्ष से जुडे रहोगे तो वृक्ष कह लाओगे। और अलग होगे तो कूडे की तरह, झाड कर फेक दिये, जाओगे।