Thursday, 27 August 2020

इन्सानियत को मार के इँसान मर रहा है,शैतान रूपी जानवर सँग वो जिन्दा हो रहा है।ये कैसी विडम्बना है ये कैसा जमाना हैं,हर तरफ छल की राहें और झूँठ का तराना हैं।हैवानों की बस्ती है यहाँ हवशी निगाहें हैं,गुल-गुलशन क्या करे जब जहरीली हवाएँ हैं।निर्दोंष कि फरियाद को मिलता नहीं सहारा,जज्बातों को कफन देके रोता है बेसहारा।सूना हुआ सफर है जल के सुलगती रातें,अब साए से डर लगता मायावी है जग की बाते।इस भूल-भुलैया में भटका हुआ मुसाफिर,पग पग पर मिल जाते हैं वहशी दरिन्दे काफिर..!!