पारिवारिक संबंधों में मत-भेद भले हो, मन-भेद न हो।*************हम अपने जीवन में बहुत सारी खट्टी-मीठी बातें लेकर घूमते रहते हैं और उन्हें बार-बार याद करके दुःखी-सुखी होते रहते हैं। हमारी यादों में मीठी यादें भी होती है, लेकिन कड़वी यादों के सामने मीठी यादें प्रायः भूल जाती है। इन यादों के कारण हम अपने जरूरी कार्यों में एकाग्रचित्त नहीं हो पाते, किसी भी काम में मन लगाकर नहीं कर पाते क्योंकि हमारा मन इन दुःखी करने वाली बातों के कारण परेशान और अस्थिर बना रहता है। समय बीतने के साथ हमारा दुःख भले ही कम हो जाता है, लेकिन उन बातों को लेकर हम रोते रहते हैं और उन्हें कभी सुलझाते नहीं हैं। होता यह है कि जिस क्षण हम किसी से झगड़ते हैं, लड़ते हैं, वह क्षण तो बीत जाता है, लेकिन इसके कारण हम अपने जीवन के वर्तमान क्षणों को प्रभावित करते रहते हैं। वह अतीत में होने वाले लड़ाई-झगड़ा हमारे साथ इस कदर जुड़ जाता है कि हम उसे भूल नहीं पाते, जैसे वही हमारा साथी हो, जबकि हमें उसे भुला देना चाहिए और अपने जीवन के हर पल को नई मुस्कुराहट के साथ जीना चाहिए। जो बीत गया उससे सीखना चाहिए कि हमसे गलतियां कहाँ-कहाँ पर हो जाती है और वह दोहराई न जाए इसके लिए प्रयास करना चाहिए। यदि हम अपनी गलतियों को सुधारेंगे नहीं, दूसरों को माफ नहीं करेंगे, अपने आप को ही सबसे सही मानेंगे और दूसरों को हमेशा अपने आगे झुकाने का प्रयास करेंगे, दूसरों को अपने अनुसार चलाएंगे तो फिर परिवार में सही सामंजस्य मधुरता कैसे बन पाएगी? यदि परिवार के सदस्य आपस में ही एक दूसरे को नहीं समझेंगे, एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान नहीं करेंगे और मनमानी करते रहेंगे तो परिवार में कलह होना स्वाभाविक है। अतः परिवार की कलह को यदि दूर करना है तो प्यार, सम्मान, स्नेह, माधुर्य व आत्मीयता का जीवन में समावेश करना चाहिए। इसके साथ ही परिवार के हर सदस्य को अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का बोध होना चाहिए और उसके लिए यथासंभव सहयोग करना चाहिए, अन्यथा एक ही व्यक्ति पर परिवार के अन्य सदस्यों के भरण पोषण व निर्वाह का भार पड़ेगा और वह मानसिक रूप से बोझिल महसूस करेगा। पारिवारिक संबंध होते ही ऐसे हैं, जहाँ किसी भी तरह का आडंबर नहीं होता। यहाँ व्यवहार, वार्तालाप, रहन-सहन सब स्वाभाविक होता है और यही कारण है कि इन संबंधों में अपनापन होता है।-