Tuesday 30 July 2024

पिछले 10 सालों में एक पीढी आई है जिनमे न जाने क्यों सारे रिश्तेदारों के लिए एक घृणा भरी हुई है। कोई रिश्तेदार घर मे आये तो अपने कमरे में छुप जाने को " कूल" माना जाता है।कोई रिश्तेदार अगर अच्छे भाव से भी पूछ लें कि क्या पढ़ाई चल रही है या नौकरी का क्या हो रहा है तो बच्चों को गुस्सा आ जाता है। मुझे लगता है पूछने वाले के इटेंशन से ज्यादा खुद के फ्रस्ट्रेशन के कारण इनको गुस्सा आता है।किसी भी खुशी या दुख में रिश्तेदार ही काम आते हैं।कुछ लोग irritating या जलने वाले हो सकते हैं, अधिकतर रिश्तेदार भला ही चाहते हैं। _______________________हम सभी बचपन से किसी ना किसी के मुँह से ये सुनते हुए ही आ रहे हैं कि कोई सगा नहीं/ कोई किसी के काम नहीं आता/ रिश्तेदार बस नाम के होते हैं आदि इत्यादि।फलस्वरूप हम शुरू से ही अपने रिश्तेदारों को भी शक की निगाह से देखने लग जाते हैं। ऐसी सोच डाल देने से स्वस्थ रिश्ते नहीं पनपते। अब जब हम ही हाथ पीछे खींच के रखेंगे तो सामने वाला भी हमारी ओर हाथ क्यूँ बढ़ाएगा?कितना अच्छा हो कि हम बच्चों को शुरू से प्यार और सहयोग सिखाएँ तो ये नफ़रत ही उत्पन्न नहीं हो।जबकि हर इंसान प्यार चाहता है, पर पहल नहीं करता। क्योंकि शक का चश्मा चढ़ा हुआ है आँखों पर। सबने ख़ुद को रोक रखा है।