Saturday, 27 July 2024

स्त्री एक किताब की तरह होती है जिसे देखते हैं सबअपनी अपनी जरूरतों के हिसाब सेकोई सोचता है उसे एक घटिया और सस्ते उपन्यास की तरहतो कोई घूरता है उत्सुक साएक हसीन रंगीन चित्रकथा समझकरकुछ पलटते हैं इसके रंगीन पन्नेअपना खाली वक्त गुजारने के लिएतो कुछ रख देते हैंघर की लाइब्रेरी में सजाकरकिसी बड़े लेखक की कृति की तरहस्टेटस सिंबल बनाकरकुछ ऐसे भी हैंजो रद्दी समझकरपटक देते हैंघर के किसी कोने मेंतो कुछ बहुत उदार होकरपूजते हैं मन्दिर मेंकिसी आले में रखकरगीता कुरान बाइबिल जैसे किसी पवित्र ग्रंथ की तरहस्त्री एक किताब की तरह होती हैजिसे पृष्ठ दर पृष्ठ कभी कोई पढ़ता नहींसमझता नहीं आवरण से लेकर अंतिम पृष्ठ तकसिर्फ देखता हैटटोलता हैऔर वो रह जाती हैअनबांची अनअभिव्यक्तअभिशप्त सीब्याहता होकर भी कुंवारी सीविस्तृत होकर भी सिमटी सीछुए तन में एकअन छुया मन लिए सदा ही स्त्री