*International Women's Day पर अमृता प्रीतम की बेहतरीन नज़्म*वह कहता था, वह सुनती थी,जारी था एक खेलकहने-सुनने का।खेल में थी दो पर्चियाँ।एक में लिखा था *‘कहो’*,एक में लिखा था *‘सुनो’*।अब यह नियति थी या महज़ संयोग?उसके हाथ लगती रही वही पर्चीजिस पर लिखा था *‘सुनो’*।वह सुनती रही।उसने सुने आदेश।उसने सुने उपदेश।बन्दिशें उसके लिए थीं।उसके लिए थीं वर्जनाएँ।वह जानती थी,'कहना-सुनना'नहीं हैं केवल क्रियाएं।राजा ने कहा, 'ज़हर पियो'*वह मीरा हो गई।*ऋषि ने कहा, 'पत्थर बनो'*वह अहिल्या हो गई।*प्रभु ने कहा, 'निकल जाओ'*वह सीता हो गई।*चिता से निकली चीख,किन्हीं कानों ने नहीं सुनी।*वह सती हो गई।*तीन बार तलाक कहा तो परित्यक्ता हो गयी घुटती रही उसकी फरियाद,अटके रहे शब्द,सिले रहे होंठ,रुन्धा रहा गला।उसके हाथ *कभी नहीं लगी वह पर्ची,*जिस पर लिखा था, *‘कहो'*।-Amrita PritamDedicated to all Women .......🙏