Monday, 29 January 2024

क्या खोया, क्या पाया जग मेंमिलते और बिछुड़ते मग मेंमुझे किसी से नहीं शिकायतयद्यपि छला गया पग-पग मेंएक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानीजीवन एक अनन्त कहानीपर तन की अपनी सीमाएँयद्यपि सौ शरदों की वाणीइतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!जन्म-मरण अविरत फेराजीवन बंजारों का डेराआज यहाँ, कल कहाँ कूच हैकौन जानता किधर सवेराअंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!अपने ही मन से कुछ बोलें!