Monday, 26 February 2024

*गुलज़ार साहब ने कितनी खूबसूरती से बता दिया कि जिंदगी क्या है।**-कभी तानों में कटेगी,**कभी तारीफों में;**ये जिंदगी है यारों,**पल पल घटेगी !!**-पाने को कुछ नहीं,**ले जाने को कुछ नहीं;**फिर भी क्यों चिंता करते हो,**इससे सिर्फ खूबसूरती घटेगी,**ये जिंदगी है यारों पल-पल घटेगी!**बार बार रफू करता रहता हूँ,**..जिन्दगी की जेब !!**कम्बखत फिर भी,**निकल जाते हैं...,**खुशियों के कुछ लम्हें !!**-ज़िन्दगी में सारा झगड़ा ही...**ख़्वाहिशों का है !!**ना तो किसी को गम चाहिए,**ना ही किसी को कम चाहिए !!**-खटखटाते रहिए दरवाजा...,**एक दूसरे के मन का;**मुलाकातें ना सही,**आहटें आती रहनी चाहिए !!**-उड़ जाएंगे एक दिन ...,**तस्वीर से रंगों की तरह !**हम वक्त की टहनी पर...*,*बेठे हैं परिंदों की तरह !!**-बोली बता देती है,इंसान कैसा है!**बहस बता देती है, ज्ञान कैसा है!**घमण्ड बता देता है, कितना पैसा है।**संस्कार बता देते है, परिवार कैसा है !!**-ना राज़* *है... "ज़िन्दगी",**ना नाराज़ है... "ज़िन्दगी";**बस जो है, वो आज है, ज़िन्दगी!**-जीवन की किताबों पर,**बेशक नया कवर चढ़ाइये;**पर...बिखरे पन्नों को,**पहले प्यार से चिपकाइये !!* *"गुलजार"*

#beti #bahu #sasural ससुराल में वो पहली सुबह - आज भी याद है.!!.. 😢. .. 😢. . . 😢कितना हड़बड़ा के उठी थी, ये सोचते हुए कि देर हो गयी है और सब ना जाने क्या सोचेंगे ?एक रात ही तो नए घर में काटी है और इतना बदलाव, जैसे आकाश में उड़ती चिड़िया को, किसी ने सोने के मोतियों का लालच देकर, पिंजरे में बंद कर दिया हो।शुरू के कुछ दिन तो यूँ ही गुजर गए। हम घूमने बाहर चले गए।.जब वापस आए, तो सासू माँ की आंखों में खुशी तो थी, लेकिन बस अपने बेटे के लिए ही दिखी मुझे।सोचा, शायद नया नया रिश्ता है, एक दूसरे को समझते देर लगेगी, लेकिन समय ने जल्दी ही एहसास करा दिया कि मैं यहाँ बहु हूँ। जैसे चाहूं वैसे नही रह सकती।कुछ कायदा, मर्यादा हैं, जिनका पालन मुझे करना होगा। धीरे धीरे बात करना, धीरे से हँसना, सबके खाने के बाद खाना, ये सब आदतें, जैसे अपने आप ही आ गयीं, घर में माँ से भी कभी कभी ही बात होती थी, धीरे धीरे पीहर की याद सताने लगी। ससुराल में पूछा, तो कहा गया -अभी नही, कुछ दिन बाद!..जिस पति ने कुछ दिन पहले ही मेरे माता पिता से, ये कहा था कि पास ही तो है, कभी भी आ जायेगी, उनके भी सुर बदले हुए थे।अब धीरे धीरे समझ आ रहा था, कि शादी कोई खेल नही। इसमें सिर्फ़ घर नही बदलता, बल्कि आपका पूरा जीवन ही बदल जाता है।..आप कभी भी उठके, अपने मायके नही जा सकते। यहाँ तक कि कभी याद आए, तो आपके पीहर वाले भी, बिन पूछे नही आ सकते।..मायके का वो अल्हड़पन, वो बेबाक हँसना, वो जूठे मुँह रसोई में कुछ भी छू लेना, जब मन चाहे तब उठना, सोना, नहाना, सब बस अब यादें ही रह जाती हैं।..अब मुझे समझ आने लगा था, कि क्यों विदाई के समय, सब मुझे गले लगा कर रो रहे थे ? असल में मुझसे दूर होने का एहसास तो उन्हें हो ही रहा था, लेकिन एक और बात थी, जो उन्हें अन्दर ही अन्दर परेशान कर रही थी, कि जिस सच से उन्होंने मुझे इतने साल दूर रखा, अब वो मेरे सामने आ ही जाएगा।..पापा का ये झूठ कि में उनकी बेटी नही बेटा हूँ, अब और दिन नही छुप पायेगा। उनकी सबसे बड़ी चिंता ये थी, अब उनका ये बेटा, जिसे कभी बेटी होने का एहसास ही नही कराया था, जीवन के इतने बड़े सच को कैसे स्वीकार करेगा ?माँ को चिंता थी कि उनकी बेटी ने कभी एक ग्लास पानी का नही उठाया, तो इतने बड़े परिवार की जिम्मेदारी कैसे उठाएगी?..सब इस विदाई और मेरे पराये होने का मर्म जानते थे, सिवाये मेरे। इसलिए सब ऐसे रो रहे थे, जैसे मैं डोली में नहीं, अर्थी में जा रही हूँ।..आज मुझे समझ आया, कि उनका रोना ग़लत नही था। हमारे समाज का नियम ही ये है, एक बार बेटी डोली में विदा हुयी, तो फिर वो बस मेहमान ही होती है।..फिर कोई चाहे कितना ही क्यों ना कह ले, कि ये घर आज भी उसका है ? सच तो ये है, कि अब वो कभी भी, यूँ ही अपने उस घर, जिसे मायका कहते हैं, नही आ सकती..!!🙏🙏 #हर_बेटी_मेरी #Betiyaan #hindimotivationalquotes#hindiinspirationalquotes#hindisuvichar #Goodthoughts #hindithoughts#hindishayari#हिंदीविचार #अनमोलवचन #सुविचार #Hindikahani#hindishayri #hindistatus#beautifullife #beautifullife #hindi #suvichar #motivation #Goodthoughts #अच्छी #सच्ची #बातें #बात

ढेर सारी किताबें पढ़कर, डॉक्टर, इंजीनियर,वकील,प्रोफेसर, वैज्ञानिक , प्रशासनिक अधिकारी व कर्मचारी बनने के बाद भी अगर दिमाग में अंधविश्वास, सड़े-गले विचार, अवैज्ञानिक पुराने तौर-तरीके वैसे ही बने रहें तो यह किताबी ज्ञान गधे पर रखी किताबों का बोझ जैसा है। इतना ज्ञान हासिल करने का क्या फ़ायदा जबकि आपका दिमाग पाखण्डी अन्धविश्वास से भरा है तो आपका ज्ञान व्यर्थ है

Sunday, 18 February 2024

निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय,बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।निंदक नियरे राखिये दोहे का अर्थ है कि हमें निंदा करने वाले इन्सान को हमेशा अपने साथ रखना चाहिए, ऐसा इन्सान हमारे अंदर की दुर्बलता और कमियों को हमारे सामने लाता है जिस कारण हम बिना पानी, साबुन के ही निर्मल हो जाते हैं।व्यक्ति का चरित्र ही उसकी पहचान है हर किसी में कुछ ना कुछ अवगुण जरुर होते हैं, पर अगर उसके साथ में ऐसा व्यक्ति है यानि की निंदक है ,जो उसके इन अवगुणों को उसे बिना हिचकिचाहट के बता देता है तो वह इंसान इन अवगुणों को गुणों में बदल सकता है इसीलिए कहा गया गया है कि निंदक आपके चरित्र और व्यवहार को निर्मल करता है।निंदा करने वाले को पास रखने का क्या मतलब है?, हमें पानी या साबुन की आवश्यकता के बिना शुद्ध होने में मदद करते हैं। आलोचना को अपने नजदीक ही रखना चाहिए. ” “” शब्द उस आलोचक को संदर्भित करता है जो आलोचनाएँ प्रदान करता है...

#story को जरूर पढ़ना ✍ बाहर बारिश हो रही थी, और अन्दर क्लास चल रही थी.तभी टीचर ने बच्चों से पूछा - अगर तुम सभी को 100-100 रुपया दिए जाए तो तुम सब क्या क्या खरीदोगे ?किसी ने कहा - मैं वीडियो गेम खरीदुंगा..किसी ने कहा - मैं क्रिकेट का बेट खरीदुंगा..किसी ने कहा - मैं अपने लिए प्यारी सी गुड़िया खरीदुंगी..तो, किसी ने कहा - मैं बहुत सी चॉकलेट्स खरीदुंगी..एक बच्चा कुछ सोचने में डुबा हुआ था टीचर ने उससे पुछा - तुम क्या सोच रहे हो, तुम क्या खरीदोगे ?बच्चा बोला -टीचर जी मेरी माँ को थोड़ा कम दिखाई देता है तो मैं अपनी माँ के लिए एक चश्मा खरीदूंगा !टीचर ने पूछा - तुम्हारी माँ के लिए चश्मा तो तुम्हारे पापा भी खरीद सकते है तुम्हें अपने लिए कुछ नहीं खरीदना ?बच्चे ने जो जवाब दिया उससे टीचर का भी गला भर आया !बच्चे ने कहा -- मेरे पापा अब इस दुनिया में नहीं है मेरी माँ लोगों के कपड़े सिलकर मुझे पढ़ाती है, और कम दिखाई देने की वजह से वो ठीक से कपड़े नहीं सिल पाती है इसीलिए मैं मेरी माँ को चश्मा देना चाहता हुँ, ताकि मैं अच्छे से पढ़ सकूँ बड़ा आदमी बन सकूँ, और माँ को सारे सुख दे सकूँ.!टीचर -- बेटा तेरी सोच ही तेरी कमाई है ! ये 100 रूपये मेरे वादे के अनुसार और, ये 100 रूपये और उधार दे रहा हूँ। जब कभी कमाओ तो लौटा देना और, मेरी इच्छा है, तू इतना बड़ा आदमी बने कि तेरे सर पे हाथ फेरते वक्त मैं धन्य हो जाऊं !20 वर्ष बाद..........बाहर बारिश हो रही है, और अंदर क्लास चल रही है !अचानक स्कूल के आगे जिला कलेक्टर की बत्ती वाली गाड़ी आकर रूकती है स्कूल स्टाफ चौकन्ना हो जाता हैं !स्कूल में सन्नाटा छा जाता हैं !मगर ये क्या ?जिला कलेक्टर एक वृद्ध टीचर के पैरों में गिर जाते हैं, और कहते हैं -- सर मैं .... उधार के 100 रूपये लौटाने आया हूँ !पूरा स्कूल स्टॉफ स्तब्ध !वृद्ध टीचर झुके हुए नौजवान कलेक्टर को उठाकर भुजाओं में कस लेता है, और रो पड़ता हैं !दोस्तों --*मशहूर होना, पर मगरूर मत बनना।**साधारण रहना, कमज़ोर मत बनना।**वक़्त बदलते देर नहीं लगती..*शहंशाह को फ़कीर, और फ़क़ीर को शहंशाह बनते,*देर नही लगती ....*यह छोटी सी कहानी आप के साथ शेयर की है, अगर दिल को छू गयी हो तो कृपया शेयर करें। 🙏🏻😊😊🙏🏻🙏🏻😊😊🙏🏻..#beautifullife #Hindi #story #kahani #motivational

Saturday, 17 February 2024

एक बहुत ग़रीब लकड़हारा था।वह प्रतिदिन जंगल में जाकर लकड़ी काटता और उसे गांव ले जाकर बेचता था। लकड़ी काटना और बेचना ही उसका काम था। इसी से उसका घर चलता था। लकड़हारा जंगल से जब लकड़ी काट कर चलता, तो रास्ते में एक राजा का महल पड़ता था। राजा महल की छत पर खड़ा होकर रोज़ देखता कि सिर पर लकड़ी उठाए लकड़हारा चला जा रहा है। रोज लकड़हारे को रोज देखते हुए राजा को उस पर दया आने लगी थी औऱ वह सोचने लगा कि बेचारा कितनी मेहनत करता है। सारा दिन लकड़ियां काटता है और बेचता है।लकड़हारा भी राजा को दूर महल की छत पर देखता, सोचता राजा कितना अच्छा है,वो रोज़ उसकी ओर दया व करुणा से देखता है।इस तरह मन की तरंगों से दोनों के बीच एक रिश्ता बन गया था। राजा लकड़हारे की ओर देख कर मुस्कुराता। लकड़हारा राजा की ओर देख कर मुस्कुराता। दोनों मन ही मन एक दूसरे के प्रति प्रेम व सम्मान रखते । दिन गुज़रते रहे। एक दिन लकड़हारे के हाथ चंदन की लकड़ी लग गई। वो उसे बेचने गांव की ओर चला।अब चंदन की लकड़ी भला कौन खरीदता? इतनी महंगी लकड़ी। बेचारा लकड़हारा सिर पर लकड़ी का गट्ठर उठाए रोज़ गांव की ओर जाता। राजा उसे महल की छत से देखता।लकड़हारा लकड़ी नहीं बिकने से उदास था।अचानक उसके मन में ख्याल आया कि अगर राजा मर जाए तो उसे जलाने के लिए अवश्य ही चंदन की लकड़ी की ज़रूरत पड़ेगी।अब लकड़हारा मन ही मन राजा के मरने की दुआ करने लगा।लकड़हारा रोज़ जंगल से लौटते हुए राजा की ओर देखता, मन ही मन सोचता कि काश राजा की मृत्यु हो जाती ।इधर लकड़हारे का मन बदला, उधर राजा का भी मन परिवर्तित हो गया ।राजा को अचानक लगने लगा कि वो तो राजा है। उसका इतना बड़ा महल है। ये गरीब लकड़हारा रोज़-रोज़ इस रास्ते से अपनी गरीबी प्रदर्शित करते हुए गुज़रता है। इसे कोई हक नहीं कि वो इधर से आए-जाए।इससे राज्य की बदनामी हो रही है।कल तक जिस लकड़हारे को देख कर राजा का मन खुश होता था, आज उसे देख कर उसके मन में नफरत होने लगी । राजा ने सिपाहियों को बुलाया और आदेश दिया कि इस लकड़हारे को पकड़ कर जेल में बंद कर दो। अब लकड़हारा जेल में बंद हो गया।राजा इतने से ही नहीं माना। उसने उस लकड़हारे को मौत की सजा भी सुना दी। महामंत्री को जब ये बात पता चली तो उसे बहुत हैरानी हुई। राजा ऐसे तो किसी को सज़ा नहीं सुनाते। फिर आज क्या बात हुई?महामंत्री जेल में लकड़हारे से मिलने पहुंचे और उन्होंने उससे पूरी कहानी जाननी चाही।लकड़हारा खुद हैरान था कि ऐसा क्यों हुआ ? उसने महामंत्री को पूरी बात बताई कि वो रोज़ महल के सामने से गुज़रता था, राजा उसे देख कर मुस्कुराता था। दोनों के बीच मन ही मन प्रेम का रिश्ता था। पर जिस दिन उसके हाथ चंदन की लकड़ी लगी, उस दिन पहली बार उसके मन में विचार आया कि काश राजा मर जाए और उसे जलाने के लिए उससे चंदन की लकड़ी खरीदी जाए। बस उसी दिन से राजा का भी मन बदल गया। महामंत्री समझदार था। वो समझ गया कि लकड़हारे के मन में जो भाव राजा के लिए जागा, ठीक वही भाव राजा के मन में भी लकड़हारे के लिए जाग गया है। दिल से दिल का ये रिश्ता भी अजीब होता है। जब तक लकड़हारे के मन में राजा के प्रति ऐसे विचार नहीं आए थे, उधर से भी प्रेम टपक रहा था। जिस दिन लकड़हारे के मन में राजा के मरने की बात आई उस दिन राजा को भी उससे नफरत होने लगी । महामंत्री ने राजा को पूरी बात विस्तार से बताई औऱ साथ ही साथ उसने लकड़हारे को भी अपने विचार औऱ सोच राजा के प्रति शुद्ध रखने की हिदायत दी।राजा ने पूरी बात समझ लकड़हारे को माफ़ कर दिया औऱ फ़िर दोनों की भावना पहले जैसी हो गई।हम जिसके प्रति अपने मन में जैसी भावना रखते हैं ,हमारे प्रति भी उस व्यक्ति के मन मे बिलकुल वैसी ही भावना पनप जाती है।दिल से दिल का रिश्ता भी बहुत अज़ीब होता है।जीवन में अपना मन,भावना औऱ विचार बिलकुल शुद्ध व पवित्र रखना बेहद ज़रूरी है।गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है.......जाकी रही भावना जैसी...प्रभु मूरत देखी तिन तैसी...!!#story. #hindikahani

Wednesday, 14 February 2024

फूल को यदि उड़ना आता तो नि:संदेह उड़कर जाता और खोज लाता रूठी तितली कोजो अब तक नहीं आई,और बसंत उसकी राह तककरचला भी गया.ख़त को यदि पता मालूम होता तोनि:संदेह पहुँच जाता उस चौखट परजिसके लिए लिखा गया थालेकिन डाकिया पता बताने वाले की राह तककर चला भी गया.हमें ज़रा भी समझ होती तो नि:संदेह पढ़ लेते तुम्हारी आँखें कि जिसमें सिर्फ़ मेरी इबारत लिखी थीलेकिन हम निपट अनपढ़ और प्रेम हमारे इकरार की राह तककर चला भी गया.जीवन में ठहरे हर पतझड़ काबस अंत हो,बसंत हो....

फूल नहीं जानता वह कौनसा फूल हैहवा भी कहाँ जानती है किस में कितनी क्षमता हैजमीन भी कहाँ तय कर पाती हैकौन सा फूल कब गिरेगापत्तियों को भी कहाँ पता होगा खुद का रंगबारिश भी कितना जानती होगी अपनी बूंदों कोक्या तुम बता सकते होसिल बटटे की हरी चटनी का तीखापनमात्र उसको देख कर ही,नहीं ना ?फिर क्यों करते हो खुद का आकलन परिक्षण किये बिना ही,क्यों स्वीकार्य करते हो पूर्वानुमानों कोजब करना चाहते हो प्रयास,क्यों भिगोते हो खुद को अनगिनत आभाओं सेजब रचना है तुम्हे स्वर्णिम इतिहाससुबह की शुरूआत हमेशा सूरज से नहीं होतीकई बार वो खुद के जागने से भी होती हैक्या तुमने देखा है ऐसा कोई वसंत जोबिना पतझड़ के आया होनहीं ना?फिर क्यों होते हो व्यथित संघर्ष पथ परजब जानते हो सफलता का मार्ग संघर्ष से ही संभव हैतुम साहस से भरे हुए हो तुम में सारे रस हैओ सारे रसो से परिपूर्ण मनुष्य तुम नहीं जानते तुम कौन हो।- सौंदर्या

Saturday, 10 February 2024

होटल पर बैठे एक शख्स ने दूसरे से कहा यह होटल पर काम करने वाला बच्चा इतना बेवकूफ है कि मैं पाँच सौ और पचास का नोट रखूंगा तो यह पचास का ही नोट उठाएगा। और साथ ही बच्चे को आवाज़ दी और दो नोट सामने रखते हुए बोला इन मे से ज़्यादा पैसों वाला नोट उठा लो, बच्चे ने पचास का नोट उठा लिया।दोनों ने क़हक़हे लगाए और बच्चा अपने काम मे लग गया पास बैठे शख्स ने उन दोनों के जाने के बाद बच्चे को बुलाया और पूछा तुम इतने बड़े हो गए तुम को पचास और पाँच सौ के नोट में फर्क नही पता।यह सुनकर बच्चा मुस्कुराया और बोला-- यह आदमी अक्सर किसी न किसी दोस्त को मेरी बेवक़ूफ़ी दिखाकर एन्जॉय करने के लिए यह काम करता है और मैं पचास का नोट उठा लेता हूँ, वह खुश हो जाते है और मुझे पचास रुपये मिल जाते है, जिस दिन मैंने पाँच सौ उठा लिया उस दिन यह खेल भी खत्म हो जाएगा और मेरी आमदनी भी।ज़िन्दगी भी इस खेल की ही तरह है हर जगह समझदार बनने की जरूरत नही होती, "जहां समझदार बनने से अपनी ही खुशियां मुतासिर होती हो वहां बेवक़ूफ़ बन जाना समझदारी है।"

Sunday, 4 February 2024

स्त्रियांबाथरूम मे जाकर कपड़े भिगोती हैं,बच्चो और पति की शर्ट की कॉलर घिसती है,बाथरूम का फर्श धोती है ताकि चिकना न रहे,फिर बाल्टी और मग भी मांजती है तब जाकर नहाती हैऔर तुम कहते हो कि स्त्रियां नहाने में कितनी देर लगातीं है।स्त्रियांकिचन में जाकर सब्जियों को साफ करती है,तो कभी मसाले निकलती है।बार बार अपने हाथों को धोती है,आटा मलती है,बर्तनों को कपड़े से पोंछती है।वही दही जमाती घी बनाती हैऔर तुम कहते हो खाना में कितनी देर लगेगी ???स्त्रियांबाजार जाती है।एक एक सामान को ठहराती है,अच्छी सब्जियों फलों को छाट ती है,पैसे बचाने के चक्कर में पैदल चल देती है,भीड में दुकान को तलाशती है।और तुम कहते हो कि इतनी देर से क्या ले रही थी ???स्त्रियांबच्चो और पति के जाने के बाद चादर की सलवटे सुधारती है,सोफे के कुशन को ठीक करती है,सब्जियां फ्रीज में रखती है,कपड़े घड़ी प्रेस करती है,राशन जमाती है,पौधों में पानी डालती है,कमरे साफ करती है,बर्तन सामान जमाती है,और तुम कहते हो कि दिनभर से क्या कर रही थी ???स्त्रियांकही जाने के लिए तैयार होते समय कपड़ो को उठाकर लाती है,दूध खाना फ्रिज में रखती है बच्चो को दिदायते देती है,नल चेक करती है,दरवाजे लगाती है,फिर खुद को खूबसूरत बनाती है ताकि तुमको अच्छा लगे और तुम कहते हो कितनी देर में तैयार होती हो।स्त्रियांबच्चो की पढ़ाई डिस्कस करती,खाना पूछती,घर का हिसाब बताती,रिश्ते नातों की हालचाल बताती,फीस बिल याद दिलाती और तुम कह देते कि कितना बोलती हो।स्त्रियां दिनभर काम करके थोड़ा दर्द तुमसे बाट देती है,मायके की कभी याद आने पर दुखी होती है,बच्चों के नंबर कम आने पर परेशान होती है,थोड़ा सा आसू अपने आप आ जाते है,मायके में ससुराल की इज़्ज़त,ससुराल में मायके की बात को रखने के लिए कुछ बाते बनाती और तुम कहते हो की स्त्रियां कितनी नाटकबाज होती है।पर स्त्रियां फिर भी तुमसे ही सबसे ज्यादा प्यार 😘 करती है...Dedicated to all ladies🙏💎✨ #नारी सशक्तिकरणCopied