Saturday, 17 February 2024

एक बहुत ग़रीब लकड़हारा था।वह प्रतिदिन जंगल में जाकर लकड़ी काटता और उसे गांव ले जाकर बेचता था। लकड़ी काटना और बेचना ही उसका काम था। इसी से उसका घर चलता था। लकड़हारा जंगल से जब लकड़ी काट कर चलता, तो रास्ते में एक राजा का महल पड़ता था। राजा महल की छत पर खड़ा होकर रोज़ देखता कि सिर पर लकड़ी उठाए लकड़हारा चला जा रहा है। रोज लकड़हारे को रोज देखते हुए राजा को उस पर दया आने लगी थी औऱ वह सोचने लगा कि बेचारा कितनी मेहनत करता है। सारा दिन लकड़ियां काटता है और बेचता है।लकड़हारा भी राजा को दूर महल की छत पर देखता, सोचता राजा कितना अच्छा है,वो रोज़ उसकी ओर दया व करुणा से देखता है।इस तरह मन की तरंगों से दोनों के बीच एक रिश्ता बन गया था। राजा लकड़हारे की ओर देख कर मुस्कुराता। लकड़हारा राजा की ओर देख कर मुस्कुराता। दोनों मन ही मन एक दूसरे के प्रति प्रेम व सम्मान रखते । दिन गुज़रते रहे। एक दिन लकड़हारे के हाथ चंदन की लकड़ी लग गई। वो उसे बेचने गांव की ओर चला।अब चंदन की लकड़ी भला कौन खरीदता? इतनी महंगी लकड़ी। बेचारा लकड़हारा सिर पर लकड़ी का गट्ठर उठाए रोज़ गांव की ओर जाता। राजा उसे महल की छत से देखता।लकड़हारा लकड़ी नहीं बिकने से उदास था।अचानक उसके मन में ख्याल आया कि अगर राजा मर जाए तो उसे जलाने के लिए अवश्य ही चंदन की लकड़ी की ज़रूरत पड़ेगी।अब लकड़हारा मन ही मन राजा के मरने की दुआ करने लगा।लकड़हारा रोज़ जंगल से लौटते हुए राजा की ओर देखता, मन ही मन सोचता कि काश राजा की मृत्यु हो जाती ।इधर लकड़हारे का मन बदला, उधर राजा का भी मन परिवर्तित हो गया ।राजा को अचानक लगने लगा कि वो तो राजा है। उसका इतना बड़ा महल है। ये गरीब लकड़हारा रोज़-रोज़ इस रास्ते से अपनी गरीबी प्रदर्शित करते हुए गुज़रता है। इसे कोई हक नहीं कि वो इधर से आए-जाए।इससे राज्य की बदनामी हो रही है।कल तक जिस लकड़हारे को देख कर राजा का मन खुश होता था, आज उसे देख कर उसके मन में नफरत होने लगी । राजा ने सिपाहियों को बुलाया और आदेश दिया कि इस लकड़हारे को पकड़ कर जेल में बंद कर दो। अब लकड़हारा जेल में बंद हो गया।राजा इतने से ही नहीं माना। उसने उस लकड़हारे को मौत की सजा भी सुना दी। महामंत्री को जब ये बात पता चली तो उसे बहुत हैरानी हुई। राजा ऐसे तो किसी को सज़ा नहीं सुनाते। फिर आज क्या बात हुई?महामंत्री जेल में लकड़हारे से मिलने पहुंचे और उन्होंने उससे पूरी कहानी जाननी चाही।लकड़हारा खुद हैरान था कि ऐसा क्यों हुआ ? उसने महामंत्री को पूरी बात बताई कि वो रोज़ महल के सामने से गुज़रता था, राजा उसे देख कर मुस्कुराता था। दोनों के बीच मन ही मन प्रेम का रिश्ता था। पर जिस दिन उसके हाथ चंदन की लकड़ी लगी, उस दिन पहली बार उसके मन में विचार आया कि काश राजा मर जाए और उसे जलाने के लिए उससे चंदन की लकड़ी खरीदी जाए। बस उसी दिन से राजा का भी मन बदल गया। महामंत्री समझदार था। वो समझ गया कि लकड़हारे के मन में जो भाव राजा के लिए जागा, ठीक वही भाव राजा के मन में भी लकड़हारे के लिए जाग गया है। दिल से दिल का ये रिश्ता भी अजीब होता है। जब तक लकड़हारे के मन में राजा के प्रति ऐसे विचार नहीं आए थे, उधर से भी प्रेम टपक रहा था। जिस दिन लकड़हारे के मन में राजा के मरने की बात आई उस दिन राजा को भी उससे नफरत होने लगी । महामंत्री ने राजा को पूरी बात विस्तार से बताई औऱ साथ ही साथ उसने लकड़हारे को भी अपने विचार औऱ सोच राजा के प्रति शुद्ध रखने की हिदायत दी।राजा ने पूरी बात समझ लकड़हारे को माफ़ कर दिया औऱ फ़िर दोनों की भावना पहले जैसी हो गई।हम जिसके प्रति अपने मन में जैसी भावना रखते हैं ,हमारे प्रति भी उस व्यक्ति के मन मे बिलकुल वैसी ही भावना पनप जाती है।दिल से दिल का रिश्ता भी बहुत अज़ीब होता है।जीवन में अपना मन,भावना औऱ विचार बिलकुल शुद्ध व पवित्र रखना बेहद ज़रूरी है।गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है.......जाकी रही भावना जैसी...प्रभु मूरत देखी तिन तैसी...!!#story. #hindikahani