गांव की आबोहवा में पहुंच गए,शहर की हवा-पानी हम छोड़ आए ।बना रहे थे आशियाना किसी का,घोंसला हम अपना छोड़ आए ।संगदिल पत्थर थे वो सारे,पेट में पत्थर रख कर हम भाग आए ।बच्चे बिलख रहे थे प्यासे,खुल्ड के रास्ते हम उनको छोड़ आए ।बहुत खाए डंडा झेल ना पाए,तन भी रास्ते में हम अपना छोड़ आए ।