Sunday 18 July 2021

पितामह भीष्म के जीवन का एक ही पाप था, किउन्होंने समय पर क्रोध नहीं किया और जटायु के जीवन का एक ही पुण्य थाकि उसने समय पर क्रोध किया। परिणामस्वरुप....एक को बाणों की शैय्या मिली और एक को प्रभु श्रीराम की गोद । अतः क्रोध भी तब पुण्य बन जाता है, जब वह धर्म और मर्यादा के लिए किया जाए औरसहनशीलता भी तब पाप बन जाती है, जब वह धर्म और मर्यादाको बचा ना पाये।