*जब हम छोटे बच्चे थे, पड़ोस में जब किसी के यहां कंस्ट्रक्शन का काम चलता था तो रेती बाहर ही पड़ी रहती थी, हम उस पर खेलते कूदते थे।* *उस रेत पर हम छोटे छोटे घर बनाते थे, और कहते थे, यह मेरा घर, यह मेरा घर और कभी कभी जब वह ढह जाता था तो एक दूसरे से लड़ते भी थे, और कहते थे, ''ये मेरा एरिया है और वो तेरा"* *जबकि उस रेत की कोई कीमत नही रहती, और जब खेलते खेलते समय हो जाता, घर से मां पुकारती थी, चलो जल्दी खाना खा लो, बहुत देर हो गई है, जल्दी आओ।* *तो हम उस रेत को, उस एरिया को, यहां तक कि उस घर को जो हमने बनाया था, जिसके लिये लड़ रहे थे, उसे भी छोड़कर चले जाते थे।क्योंकि हम जानते थे, वह सिर्फ खेल कूद की ही जगह थी, हमारा असली घर तो वो है जहां से हमें पुकारा गया है।* *इस जीवन का भी ऐसा ही है जब मालिक का बुलावा आयेगा, सब जैसे का तैसा छोड़कर चले जाना है। फिर इन सांसारिक चीजों के लिये इतने समय की बर्बादी क्यों?* *विचार करें, जो कुछ करना है वो अब ही करना है। जो मकसद है वह करना है। मक्सद सिर्फ एक ही, परमात्मा की प्राप्ती!*🙏🙏🙏🙏🙏🙏