कल रोज़-डे था , आज प्रोपोज़-डे है ।सोच रहीं हूँ आज प्रोपोज़-डे को मैं भी प्रोपोज़ कर दूं ।प्रोपोज़ल मायने प्रस्ताव रखना, विचार करना .....अब वक्त आ गया है ,प्यार से आगे भी बढ़ा जाए ।जिन हसीं चेहरों पे आ के दिल ठहर गया था,वहां से आगे भी चला जाए ।कुछ और भी चेहरे हैं इस जहां में..बदसूरत...शून्य....सूखी आंखो वाले ।रूखे हाथों वाले....भूखे पेट वाले ।इन बर्फीली सर्द रातों में भी जो फुटपाथ तले सोते हैं । हम छोड़ देते हैं जूठन प्लेटों में,वो दो टुकडों के लिए रोते हैं...!इक प्रस्तावना इनके उत्थान की ।इक मानवता के नाम की ।कुछ भूखी विलकती बच्चिओं कामंडियों में भाव भी सुना लगता है ....उदर की आग बुझाने का,सब्जबाग दिखाया जाता है...फिर मक्कारी से हवस की आग को बुझाया जाता है...भ्रूण हत्या का तो सुना था...यहां तो जिन्दा दफनाया जाता है ।एक और प्रस्ताव भी रखना है ।एक और विचार भी करना है ,उन बूढों का...उन बुज़ुर्गों का.......जो जिन्दगी के सफर के बाद भी..लाचार हैं..मजबूर हैं ।कुछ बृद्धाश्रम में सड़ रहे, कुछ घर में भी रह मज़बूर हैं ।मंजिल तक पहुंचाई औलाद जिन्होंने ....उसी के हाथों दर्द मिला....आंखे भावशून्य...न चेहरे पे नूर है ।आओ उठें...चलें ।हाथ लें मिला ।करें आज के दिन कोई नयी प्रस्तावना...क्योंकि गालिब़ ने कहा था-"और भी हैं काम ज़माने में...मोहब्बत के सिवा....."स्वस्थ रहें व्यस्त रहें मस्त रहें 🥰