Friday, 31 January 2025

यह कविता आज से बहुत साल पहले एक हकीम साहब ने कही थी, जो कवि भी थे।जहां तक काम चलता हो ग़िज़ा सेवहां तक चाहिए बचना दवा सेअगर ख़ून कम बने, बलग़म ज्यादातो खा गाजर, चने, शलज़म ज्यादाजिगर के बल पे है इंसान जीताज़ोफे(कमजोरी) जिगर है तो खा पपीताजिगर में हो अगर गर्मी का एहसासमुरब्बा, आमला खा या अन्ननास अगर होती है मेदा में गिरानी(भारीपन)तो पी ली सौंफ या अदरक का पानीथकन से हो अगर अज़लात (मांसपेशियाँ) ढीलेतो फ़ौरन दूध गरमा गरम पी लेजो दुखता हो गला नज़ले के मारेतो कर नमकीन पानी के ग़रारेअगर हो दर्द से दाँतों से बेकलतो उंगली से मसूड़ों पर नमक मलजो ताक़त में कमी होती हो महसूसतो मिस्री की डली मुल्तान की चूसशिफ़ा चाहिए अगर खांसी से जल्दीतो पी ले दूध में थोड़ी सी हल्दीदमा में ये ग़िज़ा बेशक है अच्छीखटाई छोड़ खा दरिया की मछलीअगर तुम्हें लगे जाड़े में ठंडीतो इस्तेमाल कर अंडे की ज़र्दीजो बदहज़मी में चाहे तू अफ़ाक़ा(आराम)तो दो इक वक़्त का कर ले तू फ़ाक़ा(उपवास)कॉपी पेस्ट