#जिंदगी बेहोश-बेहोश चलती है। तुम नशे-नशे में चलते हो। तुम कहां जा रहे हो, यह बहुत साफ नहीं; क्यों जा रहे हो, यह भी बहुत साफ नहीं 🍥🍥🍥🍥🍥🍥🍥🍥🍥एक संध्या ऐसा हुआ कि मुल्ला नसरुद्दीन और उसके दो मित्र भागे ट्रेन पकड़ने को। नसरुद्दीन चूक गया; पैर फिसला, गिर गया। दो चढ़ गए। स्टेशन मास्टर ने आकर उसे उठाया और कहा कि नसरुद्दीन, दुख की बात है कि तुम चूक गए! नसरुद्दीन ने कहा, मेरे लिए दुखी मत हो। वे दो जो चढ़ गए हैं, मुझे पहुंचाने आए थे। मैं तो दूसरी ट्रेन भी पकड़ लूंगा; उनका क्या होगा?तीनों नशे में धुत्त थे। यहां बड़ी हैरानी की बात है, जो चढ़ गया है, जो सफल हो गया है, पक्का मत समझना कि वह कहीं पहुंच जाएगा। जो असफल हो गया, नहीं चढ़ पाया, पक्का मत समझना कि कुछ खो गया है। यहां चढ़ने वाला, न चढ़ने वाला, सफल-असफल, जीत गया, हारा हुआ--सब एक से बेहोश हैं। जिंदगी के आखिर में हिसाब बराबर हो जाता है। सफल-असफल सब बराबर हो जाते हैं। धनी-गरीब सब बराबर हो जाते हैं। मौत तुम्हें बिलकुल साफ कोरी स्लेट की भांति कर देती है। मृत्यु के क्षण में तुम पाओगे कि जिंदगी भर जो दौड़ तुमने की, भागे, पहुंच गए--वह नाव जाने वाली नहीं है; वह किनारे पर ही आ रही है। लेकिन तब बहुत देर हो जाएगी। तब कुछ करते न बनेगा।अभी समय है। अभी कुछ किया जा सकता है। और मौत के पहले जो जाग गया, उसकी फिर कोई मौत नहीं, और जो मौत तक सोया रहा, उसका कोई जीवन नहीं; उसका जीवन एक लंबा स्वप्न है, जो मृत्यु तोड़ देगी। जो जाग गया जीते जी, उसकी फिर कोई मृत्यु नहीं। क्योंकि जो जाग गया, उसने अपने भीतर के स्वभाव को देखा और अनुभव किया कि वह अमृत है।मित्रों, मृत्यु जीवन का शाश्वत् सत्य है...उसका समय भी अनिश्चित है...एक दिन जाना सभी को है...हमें भी व हमारे प्रियजनों को भी...उस अंतिम सत्य को मन मस्तिष्क में रखकर हमेशा श्रेष्ठ कर्म करने का प्रयास करें, दीन-दुखियों व अभावग्रस्त लोगों की सेवा करें।किसी का दिल न दुखायें, संवेदनशील बनें।