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Sunday, 23 February 2020
ठोकरें ख़ाता हूँ …. पर “शान” से चलता हूँ।मैं खुले आसमान के नीचे … सीना तान के चलता हूँ।मुश्किलें तो आएँगी ही ज़िंदगी में “आने दो-आने दो”…..उठूंगा, गिरूंगा फिर उठूंगा और आखिर में “जीतूंगा …. ये मैं “ठान” के चलता हूँ ।
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