सभी सदस्य छत पर खुले आसमान के तले चैन की नींद सोते थे. बच्चे अपनी-अपनी फ़ेवरेट जगह पहले ही घेर लेते थे.रात में वो खुले आसमान के नीचे लेटना और तारे गिनना, पर कभी गिनती का ख़त्म न होना. साथ ही याद आता है गर्मियों की छुट्टी में बुआ और मौसी के बच्चों के साथ छत खाना-बनाना.मेरा गांव शहर और मेरी छत, आज भी मुझे दोनों की कमी खलती है.