Sunday, 14 March 2021

*तीन पहर तो बीत गये,**बस एक पहर ही बाकी है।**जीवन हाथों से फिसल गया,**बस खाली मुट्ठी बाकी है।**सब कुछ पाया इस जीवन में,**फिर भी इच्छाएं बाकी हैं**दुनिया से हमने क्या पाया,**यह लेखा - जोखा बहुत हुआ,**इस जग ने हमसे क्या पाया,**बस ये गणनाएं बाकी हैं।**इस भाग-दौड़ की दुनिया में**हमको इक पल का होश नहीं,**वैसे तो जीवन सुखमय है,**पर फिर भी क्यों संतोष नहीं !**क्या यूं ही जीवन बीतेगा,**क्या यूं ही सांसें बंद होंगी ?**औरों की पीड़ा देख समझ**कब अपनी आंखें नम होंगी ?**मन के अंतर में कहीं छिपे**इस प्रश्न का उत्तर बाकी है।**मेरी खुशियां, मेरे सपने**मेरे बच्चे, मेरे अपने**यह करते - करते शाम हुई**इससे पहले तम छा जाए**इससे पहले कि शाम ढले**कुछ दूर परायी बस्ती में**इक दीप जलाना बाकी है।**तीन पहर तो बीत गये,**बस एक पहर ही बाकी है।**जीवन हाथों से फिसल गया,* *बस खाली मुट्ठी बाकी है ।*