Thursday, 8 April 2021

इस कविता को गीतकार तनवीर ग़ाज़ी ने लिखा है।तू खुद की खोज में निकलतू किस लिए हताश है,तू चल तेरे वजूद कीसमय को भी तलाश हैजो तुझ से लिपटी बेड़ियाँसमझ न इनको वस्त्र तू ये बेड़ियां पिघाल केबना ले इनको शस्त्र तूबना ले इनको शस्त्र तूतू खुद की खोज में निकलविज्ञापनतू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद कीसमय को भी तलाश हैसमय को भी तलाश हैचरित्र जब पवित्र हैतो क्यों है ये दशा तेरीये पापियों को हक़ नहींकि ले परीक्षा तेरीकि ले परीक्षा तेरीतू खुद की खोज में निकलतू किस लिए हताश है तू चल, तेरे वजूद कीसमय को भी तलाश हैजला के भस्म कर उसेजो क्रूरता का जाल हैतू आरती की लौ नहींतू क्रोध की मशाल हैतू क्रोध की मशाल हैतू खुद की खोज में निकलतू किस लिए हताश हैतू चल तेरे वजूद कीसमय को भी तलाश हैसमय को भी तलाश हैचूनर उड़ा के ध्वज बनागगन भी कंपकंपाएगा अगर तेरी चूनर गिरीतो एक भूकंप आएगातो एक भूकंप आएगातू खुद की खोज में निकलतू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद कीसमय को भी तलाश हैसमय को भी तलाश है