राख तेरी उड़ जायेगीजब चिट्ठी कटेगी ऊपर वाले की तब समय होगा तेरे जाने का । सगे-सम्बन्धी तेरे सब जमा होकर तुझको चम्मच भर गंगाजल पिलायेंगे । आटे पानी का लड्डु रखेंगे सामने तेरे , जब जरूरत नहीं होगी तेरे खाने की । पाँच पच्चीस मिलकर जल्दी करेंगे तुझको ले जाने की , लकड़ी से अभी जला देंगे तुझको और जल्दी करेंगे नहाने की। अस्थि लेकर तेरी चल पड़ेंगे सब और राख तेरी उड़ जायेगी । दो दिन तक शोक मनायेगी दुनिया और उतावली होगी मिष्ठान खाने को। स्वार्थ की सारी है ये दुनिया सब पल भर में भूल जायेगी...।