नहींआप मेरी बेटी को अपनी इच्छा (सहूलियत) के हिसाब से नहीं रख सकते।मैंने कई पिता को अपने दामाद और उसके परिवार से कहते सुना है कि "अब हमारी बेटी आपकी हुई, आपको जैसे ठीक लगे वैसे उसे रखना।" पर नहीं, आप हमेशा याद रखना की मेरी बेटी आज भी मेरी बेटी है और ताउम्र रहेगी।जैसे आपका बेटा एक अच्छे जीवनसाथी को पाने के लिए शादी के बंधन में बंधा है वैसे ही मेरी बेटी भी एक सच्चे हमसफर को पाने ही चाह लेकर ही आपके बेटे से शादी के बंधन में बंधी है।जैसे आप चाहते है कि मेरी बेटी आपकी सारी अपेक्षाएं पूर्ण करें ऐसे मैं भी चाहता हूँ कि आपका बेटा भी मेरी अपेक्षाओं में खरा उतरे।आप जैसे चाहते हैं कि मेरी बेटी आपके बेटे की हर ख़्वाहिश पूरी करे वैसे मैं भी चाहता हूँ कि आपका बेटा भी मेरी बेटी का हर सपना पूरा करे।आप जैसी अपेक्षाएं मेरी बेटी से रखते हैं वैसे ही अपेक्षाएं मैं आपके बेटे से भी रखता हूँ।जैसे मैंने अपनी बेटी को प्यार से पाला है वैसे ही आपको भी मेरी बेटी को रखना होगा, आप जैसे चाहे वैसे उसे रख नहीं सकते। मेरी नज़र हमेशा उस पर बनी रहेगी।मेरी बेटी अपने पति का प्यार पाने के लिए तरसेगी नहीं, वो उसके जीवन का अविभाज्य अंग है। अगर वो अपने पति को समय देने से कतराती नहीं तो उन दोनों के बीच भी कोई नहीं आएगा।वो आपके घर के किसी कोने में पति के समय और साथ का इंतज़ार करते हुए रोनी नहीं चाहिए और उसकी इस अपेक्षा को गुनाह मानना भी उसे मंजूर नहीं होगा।जमाइराज, अगर आप उसके साथ हो तो वो उस घर में या धरती के किसी भी कोने में अकेली कैसे हो सकती है? और आपकी अर्धांगिनी है तो फिर बाहर से आनेवाली के ताने या उपेक्षा वो क्यों सहे?उसे कभी भी वो जो है जैसी है उस बात के लिए शर्म या संकोच नहीं होना चाहिए, वो हंसमुख है तो खुले दिल से हँसेगी भी। वो सरल, शांत होने के साथ साथ स्वतंत्र भी है।आपने जैसे संस्कार अपने बेटे को दिए है वैसे ही संस्कार मैंने अपनी बेटी को भी दिए हैं इसलिये उसके संस्कारों को निशाना बनाने की गलती मत कीजियेगा।याद रहे वो सिर्फ अपना घर बदल रही है अपना व्यक्तित्व या अस्तित्व नहीं।उसे खुलकर हँसने का, जीने का, अपने विचारों को व्यक्त करने का पूरा हक है और उसके इस हक का सम्मान आपको करना होगा।आपके बेटे से बिल्कुल भी कम मत आँकना मेरी बेटी की ज़िंदगी को, वो ऐसी ज़िन्दगी क्यों जिये जो उसकी नहीं है?..कभी भी ऐसा मत सोचियेगा की अब उसका कोई नहीं है, शादी के बाद बेटियां पराई हो जाती थी वो दिन भी अब पराये (पुराने)हो गए।मैं पिता हूँ उसका और जब जब उसे ज़रूरत होगी उसके साथ खड़ा रहूंगा। उसके पिता के घर के दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे और वहाँ का आँगन हमेशा उसकी राह ताकता रहेगा।वो भी आपके परिवार की सदस्य है अब उसका स्वीकार वैसे ही करना जैसे आपने अपने बच्चों का किया है।उसे अकेला या परायेपन का एहसास ना हो इसका ध्यान रखना। क्योंकि मेरी बेटी स्वतंत्र ज़रूर है पर अकेली नहीं।वो हमारी ज़िंदगी का सबसे बड़ा अनमोल खज़ाना है,वो हमारी ज़िंदगी में खुशियां और प्यार लेकर आई है। वैसी ही खुशियाँ और प्यार वो आपके घर में भी बिखेरेगी ऐसे संस्कार दिए है मैंने। उसका सम्मान करना।क्योंकि जिस दिन मेरी बेटी की आँख में आँसू आये, उसका पिता सबकी आंखों से आँसू बहा देगा।#गुजरात के कवि श्री तुषार शुक्ल की लिखी हुई रचना का हिंदी अनुवाद ।