*चल सखी*चल सखी, कहीं चलते हैं,हम मिलकर कहीं चलते हैं।पति का ऑफ़िस, बड़ों की सेहत,और पढ़ाई बच्चों की,थोड़ी देर के लिए भूलते हैं।चल सखी, कहीं चलते हैं। कुछ ग़म, कुछ रोज़ाना के टेंशन,बोरिंग सा रूटीन,इनके जाले तोड़कर,ज़िंदगी में आगे निकलते हैं।चल सखी, कहीं चलते हैं। रात भर जागेंगे,बिंदास, बिना बात हँसेंगे,यादें मीठी संजोएंगे,और हाँ, करके दुखड़े हल्के,रुमाल भी भिगोएंगे,सबसे जाकर दूर, अब ख़ुद से मिलते हैं।चल सखी, कहीं चलते हैं। अचानक क्यों आया मटरगश्ती का यह ख़याल,क्योंकि कल देखे सिर पर चार सफ़ेद बाल,बुढ़ापा देने लगा है दस्तक,अब बुढ़ापे के मुँह पर,ज़ोर से दरवाज़ा बंद करते हैं।चल सखी, कहीं चलते हैं। तुम सहेलियाँ ही तो मेरी पूँजी हो,हर हाल में जो बेफ़िक्र करे, वह कुँजी हो,ज़िम्मेदारियों ने ज़िंदादिली को बंद किया है ताले में,उस ताले को हम मिलकर तोड़ते हैं।चल सखी, कहीं चलते हैं। हम औरतें हैं,अपनों के लिए जीती हैं,और उनपर ही मरती हैं,दो दिन ही सही, अपने लिए जीते हैं,चल सखी, कहीं चलते हैं। हमारी दोस्ती दमदार है,हमारे ठहाकों को ग़म भी ठिठक कर देखने लगता है,परेशानियों की छाती पर मिलकर मूँग दलते हैं।चल सखी, कहीं चलते हैं। बहुत ठंड जमी है अपने वजूद पर,चलो दोस्ती की धूप में निकलते हैं।चल सखी, कहीं चलते हैं।चल सखी, कहीं चलते हैं।