मन की बात.. 🖤एक स्त्री जब दुल्हन बनती है..अपने घूंघट के पीछे हजारों सपने लिए..अपने पति के घर जाने को तैयार हो जाती है..सपने कुछ उसकी खुशहाली के..कुछ अपनो के खुशहाली के होते..थोड़ा डर होता के क्या वो अपने सपने सच कर पाएगी??क्या अपने ससुराल वालों की आंखों का तारा बन पाएगी??कुछ अधूरे सपने अधूरे जवाब लिए मंडप पर बैठ जाती है..फिर मां से हौसला समेटे..अपने सपनों और हजारों सवाल के साथ ससुराल को आ जाती..घर में कभी कोई लाड प्यार से उसे संवारता है..तो कभी कोई खरी खोटी कह दुत्कारता है..वो डरती है सहमती है,, पर कुछ कह नहीं पाती..मां का फोन आता है..भरी सहमी अपनी बच्ची की आवाज को समझ,,मां पूछती है,, बेटा तू ठीक नहीं लग रही..एक बेटी तो अपनी मां से सब कह देना चाहती है..पर एक बहू और पत्नी के दर्जे से कुछ बयां नही कर पाती..और हंसकर कह जाती,, नहीं मां सब ठीक है..अक्सर एक स्त्री जब बेटी होती..उसमे जज़्बा होता अपने और अपनो के सपनों को सच कर दिखाने का..पर जैसे ही वह स्त्री एक बहू और पत्नी बनती है..उसके जीवन का पर्याय ही बदल जाता है..वो जिम्मेदारियो के बीच इतनी घिर चुकी होती है..के फिर ना उसके सपनों का कोई मोल होता है और ना सपने सच करने की उम्मीद..🖤🖤🖤