दोस्तों आजके माहौल को देखते हुए और सरकार की तरफ से अपील को देखते हुए ज़हन मे रात ही यह ग़ज़ल उतरी पेशे ख़िदमत है बेवजह घर से निकलने की,ज़रूरत क्या है |मौत से इश्क़ लड़ाने की, ज़रूरत क्या है ||सबको मालूम है, बाहर की हवा है क़ातिल |यूँ ही क़ातिल से उलझने की, ज़रूरत क्या है ||दिल बहलने के लिए, घर मे वजह हैं काफी |यूँ ही गलियों मे भटकने की,ज़रूरत क्या है||ज़िन्दगी एक नियामत, इसे संभाल के रख |क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है ||मुस्कुराके , आंख का झुकना भी अदब होता है|हाथ से हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है ||लोग जब हाथ मिलाते हुए कतराते हों|ऐसे रिश्तों को निभाने की ज़रूरत क्या है ||अमितोष ग़ज़ल pandit.