Sunday, 31 January 2021
Saturday, 30 January 2021
जिसने भी लिखा है -✍- शानदार लिखा है --👌*MAKE UP....(मेकअप)*💅लोग कहते हैं कि ..औरतें बहुत *मेकअप* करती हैं सच ही तो है ..औरतें सिर्फ चेहरे पर ही नही.. बल्कि घर, परिवार, बच्चे, पति, समाज, सभी की कमियों पर हमेशा *मेकअप* ही करती रहती हैंदोस्तों की गलतियों पर *मेकअप*बेहतर शिक्षा न मिलने पर माता-पिता पर *मेकअप*शादी होने पर ससुराल वालों के तानों पर *मेकअप*मायके की कमियों पर *मेकअप*रिश्तों की बदनीयती पर *मेकअप*बच्चों की कमियों पर *मेकअप* 🤳और उनकी गलतियों पर *मेकअप*बुढ़ापे में दामाद के द्वारा किया गए अनादर पर *मेकअप*तो बहु की बेरुखी पर *मेकअप*🤳पोता-पोती की शरारतों पर *मेकअप*और आखिर में..बुढ़ापे में परिवार में अस्तित्वहीन होने पर *मेकअप*🤳एक औरत जन्म से लेकर मृत्यु तक *मेकअप* ही तो करती रहती हैसिर्फ एक ही आस में कि उसे⬇*""तारीफ के दो बोल मिल जाये""**तभी तो कहते हैं..**बिना #Makeup अधूरी नारी* 🤳*Dedicated to all Beautiful Ladies..*🙏🙏
Friday, 29 January 2021
Thursday, 28 January 2021
Wednesday, 27 January 2021
Tuesday, 26 January 2021
Monday, 25 January 2021
स्त्रियाँ निपट मूर्ख होती हैं दाँत किटकिटाती ठंड मेंबग़ैर स्वेटर, कार्डीगन, शॉल पहने वैवाहिक उत्सवों में सम्मिलित स्त्रियों पर खूब मीम्ज बनते हैंचुटकले गढ़े जाते हैंक्योंकि हमारी नजरों में स्त्रियाँ निपट मूर्ख होतीं हैं।यदि वो घर की चारदीवारी से निकलकुछ पलों के लिए जीना चाहतीं हैंख़ुद के लिएप्रदर्शित करना चाहतीं हैंअपने डिजायनर ब्लाउजबेलबूटेदार साड़ियाँकलात्मक आभूषणतो इसमें भला इतनी आपत्ति क्यों?लेकिन हाड़ कंपाती सर्द सुबह में जब हम रजाई में बैठे-बैठेचाय की चुस्कियां लेते हुएठंड को गरियाकरगर्माहट पा रहे होते हैंतब यही मूर्ख स्त्रियाँनहा धोकर चौके में हमारे लिए चाय-नाश्ता बना रही होतीं हैं।कभी सोचिएये मूर्ख स्त्रियाँ किस मिट्टी की बनी होती हैंजो जेठ-आषाढ़ की झुलसाती हुई गर्मी मेंचूल्हे के सामने खुद को पसीने में डुबोएपेट, पीठ, गर्दन पर घमौरियों की कई-कई परतें चढ़ाएहमारी भूख को शान्त करने का इंतजा़म करतीं हैंग़र्म तैल से छनछनाते परांठे को चिमटे की जगहअंगुलियों से पकड़ गर्मागरम परोस देतीं हैं।तब कोई मीम्ज नहीं बनतेतब कोई चुटकले नहीं गढ़े जातेउस समय हमारी वणिक बुद्धि उन्हें ममत्व की प्रतिमूर्तिगृह-लक्ष्मीत्यागशील देवीऔर ना जाने क्या-क्या उपमाएँ देकर उन्हें छले चली जाती हैतब हमारे हास्य विनोद की सृजनशीलताछद्म वाकपटुताहलक में फंसी रह जाती है।हाँ!स्त्रियाँ निपट मूर्ख होतीं हैं जो परिवार को ताजा गर्म और स्वास्थ्यवर्धक खाना देने के लिए अपनी देह को झुलसाती हैंरात के ठिठुरते बर्फ़ीले पानी में अपनी हड्डियों को गलातीं हैं।चुटकुले यहाँ बनने चाहिए थे मगर,,,ख़ैर छोड़िए..!अब रजाई छोड़ उठिएरात के बर्तन धोकरसुबह की चाय ख़ुद ही बनाइये बहुत से चुटकुलों और सवालों के जवाब Author: Unknown
#मेरी सब सखियांमेरी सब सखियांचाय की माफिक कड़क हैपक पक कर स्वादिष्ट हो गईजिंदगी जीने में माहिर हो गईदूध बनकर ससुराल आयी थीअदरक की तरह कूटी गईवो अपनी चीनी मिलाती रहीऔर तजुर्बा की आंच मे खुद को पकाती रहीऔर आज देखो सबमजे से घर चलाती हैंऔर अपना भी दिल बहलाती हैचालीस के पार होकर भीछब्बीस सी नजर आती हैकोई अब दूध सा उफनता नहींकिसी का हाथ अब जलता नहींसब समेट लेती हैखुद को सहेज लेती हैये उम्र दराज नहीं होतीउम्र को दराज में रख देती हैइनके बच्चे बड़े हो रहेऔर ये इलायची सी महक रहीबूढ़े हो इनके दुश्मनये रोज नए नाम कर रहीइनका नशा कभी कम ना होताकुल्हड़ हो या वोन चाइनाइन्हे कभी कोई गम ना होताये तो अदरक से भीदोस्ती निभाती हैउसे अपने अंदर समाउसका भी स्वाद बढ़ाती हैचाय की माफिकसबकी पहली पसंद कहलाती हैDedicated to all female friends😊👍🏻
Sunday, 24 January 2021
Saturday, 23 January 2021
Friday, 22 January 2021
Thursday, 21 January 2021
जीवन में सबकुछ अच्छा चल रहा हो तब भी जरा सावधान रहिए..क्योंकि सड़क पर "गड्ढे" और जिंदगी में "रगड़े" कभी भी आ सकते हैं। अपने बच्चों को भी अचानक आई परेशानी को झेलने के लिए तैयार कीजिए । उन्हें गमले का पौधा मत बनाइये जो वक़्त पर पानी न मिले तो मुरझा जाए । उन्हें जंगल का झाड़ बनाइये जो आंधी-तुफान और सूखे से संघर्ष कर के अपने वजूद को बचा सके।
Dedicated to all ladies*स्त्रियाँ*, कुछ भी बर्बाद नही होने देतीं।वो सहेजती हैं।संभालती हैं।ढकती हैं।बाँधती हैं।उम्मीद के आख़िरी छोर तक।कभी तुरपाई कर के।कभी टाँका लगा के।कभी धूप दिखा के।कभी हवा झला के।कभी छाँटकर।कभी बीनकर।कभी तोड़कर।कभी जोड़कर।देखा होगा ना👱♀ ?अपने ही घर में उन्हेंखाली डब्बे जोड़ते हुए। बची थैलियाँ मोड़ते हुए। बची रोटी शाम को खाते हुए।दोपहर की थोड़ी सी सब्जी में तड़का लगाते हुए।दीवारों की सीलन तस्वीरों से छुपाते हुए।बचे हुए खाने से अपनी थाली सजाते हुए।फ़टे हुए कपड़े हों।टूटा हुआ बटन हो। पुराना अचार हो।सीलन लगे बिस्किट,चाहे पापड़ हों।डिब्बे मे पुरानी दाल हो।गला हुआ फल हो।मुरझाई हुई सब्जी हो।या फिरतकलीफ़ देता " रिश्ता "वो सहेजती हैं।संभालती हैं।ढकती हैं।बाँधती हैं।उम्मीद के आख़िरी छोर तक...इसलिए , आप अहमियत रखिये!वो जिस दिन मुँह मोड़ेंगीतुम ढूंढ नहीं पाओगे...।" *मकान" को "घर" बनाने वाली रिक्तता उनसे पूछो जिन घर मे नारी नहीं वो घर नहीं मकान कहे जाते हैं* यही नारी दादी - नानी, मां, बहन, पत्नी, पुत्री - पुत्र वधु के रूप में आप - हम सबके घरों को स्वर्ग बनातीं हैं।"नारी शक्ति का सशक्तिकरण ही सम्पूर्ण मानवीयता का सशक्तिकरण है।"Author: Unknown
#मेरी सब सखियांमेरी सब सखियांचाय की माफिक कड़क हैपक पक कर स्वादिष्ट हो गईजिंदगी जीने में माहिर हो गईदूध बनकर ससुराल आयी थीअदरक की तरह कूटी गईवो अपनी चीनी मिलाती रहीऔर तजुर्बा की आंच मे खुद को पकाती रहीऔर आज देखो सबमजे से घर चलाती हैंऔर अपना भी दिल बहलाती हैचालीस के पार होकर भीछब्बीस सी नजर आती हैकोई अब दूध सा उफनता नहींकिसी का हाथ अब जलता नहींसब समेट लेती हैखुद को सहेज लेती हैये उम्र दराज नहीं होतीउम्र को दराज में रख देती हैइनके बच्चे बड़े हो रहेऔर ये इलायची सी महक रहीबूढ़े हो इनके दुश्मनये रोज नए नाम कर रहीइनका नशा कभी कम ना होताकुल्हड़ हो या वोन चाइनाइन्हे कभी कोई गम ना होताये तो अदरक से भीदोस्ती निभाती हैउसे अपने अंदर समाउसका भी स्वाद बढ़ाती हैचाय की माफिकसबकी पहली पसंद कहलाती हैDedicated to all female friends😊👍🏻
Wednesday, 20 January 2021
Tuesday, 19 January 2021
दुःखद....घर की चक्की ही तो है, ज़्यादा चल गयी तो क्या? रोटियां सेकना काम है उसका, उँगलियाँ गर जल भी गयी तो क्या? अपना घर छोड़ के जाना होगा, ज़िन्दगी जो पूरी बदल गयी तो क्या? पति है परमेश्वर, कुछ भी कहे, ज़ुबान ही तो है, चल गयी तो क्या? तुमको चलना है बच बच कर, आदमी की नीयत मचल गयी तो क्या? ग्रहस्थी संजोना देखो संभल कर, पुरुष से फिसल गयी तो क्या? गाड़ी दो पहियों पे है चलती, मेरी एक पे चल गयी तो क्या? उसकी उम्र बढ़ाने को रखना व्रत, तुम्हारी अपनी उम्र निकल गयी तो क्या? सुनो वो थक जाता है ऑफिस के काम से, तुम दिन भर खट के ढल गयी तो क्या? पैदा तुमने किया, बच्चे पालो भी तुम, बिन सोये कई रातें निकल गयी तो क्या? कल तक चलती थी पति की, अब बच्चों की चल गयी तो क्या? घर की लक्ष्मी हो, है घर ये तुम्हारा , घर के बाहर " नाम की तख़्ती " से, ओंस बनके पिघल गयी... तो क्या??? सुनो, हो कौन तुम? क्या पहचान है? Mrs.....बनके ही दुनियां से निकल गयी तो क्या?Author: Unknown
Monday, 18 January 2021
Sunday, 17 January 2021
*माँ कभी वापिस नहीं आती...!**उम्र - दो साल* -- मम्मा कहाँ है ? मम्मा को दिखा दो, मम्मा को देख लूँ, मम्मा कहाँ गयी ?...*उम्र - चार साल* -- मम्मी कहाँ हो ? मैं स्कूल जाऊँ ? अच्छा bye मुझे आपकी याद आती है स्कूल में...*उम्र - आठ साल* -- मम्मा, लव यू, आज टिफिन में क्या भेजोगी ? मम्मा स्कूल में बहुत होम वर्क मिला है... *उम्र - बारह साल* -- पापा, मम्मा कहाँ है ? स्कूल से आते ही मम्मी नहीं दिखती, तो अच्छा नहीं लगता... *उम्र - चौदह साल* -- मम्मी आप पास बैठो ना, खूब सारी बातें करनी है आपसे...*उम्र - अठारह साल* -- ओफ्फो मम्मी समझो ना, आप पापा से कह दो ना, आज पार्टी में जाने दें...*उम्र - बाईस साल* -- क्या माँ ? ज़माना बदल रहा है, आपको कुछ नहीं पता, समझते ही नहीं हो...*उम्र - पच्चीस साल* -- माँ, माँ जब देखो नसीहतें देती रहती हो, मैं दुध पीता बच्चा नहीं...*उम्र - अठाईस साल* -- माँ, वो मेरी पत्नी है, आप समझा करो ना, आप अपनी मानसिकता बदलो...*उम्र - तीस साल* -- माँ, वो भी माँ है, उसे आता हैं बच्चों को सम्भालना, हर बात में दखलंदाजी नहीं किया करो...*और उस के बाद, माँ को कभी पूछा ही नहीं। माँ कब बूढ़ी हो गयी, पता ही नहीं उसे। माँ तो आज भी वो ही हैं, बस उम्र के साथ बच्चों के अंदाज़ बदल जाते हैं...* *उम्र - पचास साल* -- फ़िर एक दिन माँ, माँ चुप क्यों हो ? बोलो ना, पर माँ नहीं बोलती, खामोश हो गयी...*माँ, दो साल से पचास साल के, इस परिवर्तन को समझ ही नहीं पायी, क्योंकि माँ के लिये तो पचास साल का भी प्रौढ़ भी, बच्चा ही हैं, वो बेचारी तो अंत तक, बेटे की छोटी सी बीमारी पर, वैसे ही तड़प जाती, जैसे उस के बचपन में तडपती थी।**और बेटा, माँ के जाने पर ही जान पाता है, कि उसने क्या अनमोल खजाना खो दिया...?**ज़िन्दगी बीत जाती है, कुछ अनकही और अनसुनी बातें बताने कहने के लिए, माँ का सदा आदर सत्कार करें, उन्हें भी समझें और कुछ अनमोल वक्त उनके साथ भी बिताएं, क्योंकि वक्त गुज़र जाता है, लेकिन माँ कभी वापिस नहीं मिलती...!!*** *हर बच्चे तक पहुंचा कर उसे एहसास करवाइए माँ का प्यार क्या होता है।* *Dedicated to all Mothers...!*💐🙏💐
Saturday, 16 January 2021
पिता अपने परिवार और अपने बच्चो की खुशियों व उन्हें भविष्य को सुरक्षित बनाने उनकी हर खवाईश पूरी करने के लिए कड़ी मेहनत करता और और इस बिच पिता अपने सपनों व इच्छाओ का बलिदान कर देता है | धरती सा धीरज दिया और आसमान सी उंचाई हैजिन्दगी को तरस के खुदा ने ये तस्वीर बनाई हैहर दुख वो बच्चों का खुद पे वो सह लेतें हैउस खुदा की जीवित प्रतिमा को हम पिता कहते है
Friday, 15 January 2021
👉 कहां थे, कहां पहुँच गये...एक तौलिया से पूरा घर नहाता था, दूध का नम्बर बारी-बारी आता था, छोटा माँ के पास सो कर इठलाता था, पिताजी से मार का डर सबको सताता था, बुआ के आने से माहौल शान्त हो जाता था, पूड़ी खीर से पूरा घर रविवार व् त्यौहार मनाता था, बड़े भाई के कपड़े छोटे होने का इन्तजार रहता था, स्कूल मे बड़े भाई की ताकत से छोटा रौब जमाता था, बहन-भाई के प्यार का सबसे बड़ा नाता था, धन का महत्व कभी कोई सोच भी न पाता था, बड़े का बस्ता किताबें साईकिल कपड़े खिलोने पेन्सिल स्लेट स्टाईल चप्पल सब से छोटे का नाता था, मामा-मामी नाना-नानी पर हक जताता था, एक छोटी सी सन्दुक को अपनी जान से ज्यादा प्यारी तिजोरी बताता था !अबतौलिया अलग हुआ, दूध अधिक हुआ, माँ तरसने लगी, पिता जी डरने लगे, बुआ से कट गये, खीर की जगह पिज्जा बर्गर मोमो आ गये, कपड़े भी व्यक्तिगत हो गये, भाईयो से दूर हो गये, बहन से प्रेम कम हो गया, धन प्रमुख हो गया, अब सब नया चाहिये, नाना आदि औपचारिक हो गये, बटुऐ में नोट हो गये, कई भाषायें तो सीखे मगर संस्कार भूल गये, बहुत पाया मगर काफी कुछ खो गये, रिश्तो के अर्थ बदल गये, हम जीते तो लगते है पर संवेदनहीन हो गये !कृपया सोचें
Thursday, 14 January 2021
Wednesday, 13 January 2021
Tuesday, 12 January 2021
Monday, 11 January 2021
Sunday, 10 January 2021
Saturday, 9 January 2021
Friday, 8 January 2021
Thursday, 7 January 2021
अपनी ख़ुशी टाँगने को, तुम कंधे क्यूँ तलाशती हो..? कमज़ोर हो, ये वहम क्यों पालती हो..??ख़ुश रहो क़ि ये काजल, तुम्हारी आँखों मे आकर सँवर जाता हैं..! ख़ुश रहो क़ि कालिख़ को, तुम निखार देती हों..!!ख़ुश रहो क़ि तुम्हारा माथा, बिंदिया की ख़ुशकिस्मती हैं..! ख़ुश रहो क़ि तुम्हारा रोम-रोम, बेशक़ीमती हैं..!!ख़ुश रहो क़ि तुम न होतीं, तो क्या-क्या न होता..? न मकानों के घर हुए होते, न आसरा होता..!!न रसोइयों से खुशबुएँ ममता की, उड़ रही होतीं..! न त्योहारों पर महफिलें, सज रही होतीं..!!ख़ुश रहो क़ि तुम बिन, कुछ नहीं हैं..! तुम्हारे हुस्न से ये आसमाँ, दिलक़श और ये ज़मीं हसीं हैं..!!ख़ुश रहो क़ि रब ने तुम्हें पैदा ही, ख़ुद मुख़्तार किया..! फ़िर क्यों किसी और को तुमने, अपनी मुस्कानों का हक़दार किया..!!ख़ुश रहो जान लो क़ि, तुम क्या हों..? चांद सूरज हरियाली, हवा हो..!!खुशियाँ देती हो, खुशियाँ पा भी लो..! कभी बेबात, गुनगुना भी लों..!!अपनी मुस्कुराहटों के फूलों को,अपने संघर्ष की मिट्टी में खिलने दो..! अपने पंखों की ताकत को, नया आसमान मिलने दो..!!और हाँ मत ढूँढो कंधे..! क़ि सहारे, सरक जाया करते हैं..!!😊 Dedicated to all women
धीरे धीरे अब रिश्ते बदलने लगे हैं..अपना कहना वालों के दिलों में अब तेरे मेरे के भाव भरने लगे हैं===ज़ुबान पे मिठास और दिलो में कड़वाहट रखते हैं... रिश्तों को अपने पन के भाव से नहीं पैसे से परखते हैं ... खून के रिश्तों की गरीबी अमीरी की तराज़ू में तोलते हैं... पैसों से कमजोर के लिए बेगानापन और पैसों वालो के लिए बातो में शहद घोलते हैं।
Wednesday, 6 January 2021
आया दौर फ्लैट कल्चर का,देहरी, आंगन, धूप नदारद।हर छत पर पानी की टंकी,ताल, तलैया, कूप नदारद।।पैकिंग वाले चावल, दालें,डलिया,चलनी, सूप नदारद।।🤨🤨बढ़ीं गाड़ियां, जगह कम पड़ी, सड़कों के फुटपाथ नदारद। *लोग हुए मतलबपरस्त सब,* *मदद करें वे हाथ नदारद।।* मोबाइल पर चैटिंग चालू,यार-दोस्त का साथ नदारद।बाथरूम, शौचालय घर में,कुआं, पोखरा ताल नदारद।।🤨🤨हरियाली का दर्शन दुर्लभ, *कोयलिया की कूक नदारद।* घर-घर जले गैस के चूल्हे,चिमनी वाली फूंक नदारद।।मिक्सी, लोहे की अलमारी,सिलबट्टा, संदूक नदारद।*मोबाइल सबके हाथों में,**विरह, मिलन की हूक नदारद।।*🤨🤨बाग-बगीचे खेत बन गए,जामुन, बरगद, रेड़ नदारद।सेब, संतरा, चीकू बिकतेगूलर, पाकड़ पेड़ नदारद।।ट्रैक्टर से हो रही जुताई,जोत-जात में मेड़ नदारद। *रेडीमेड बिक रहा ब्लैंकेट,* *पालों के घर भेड़ नदारद।।*🤨🤨लोग बढ़ गए, बढ़ा अतिक्रमण,जुगनू, जंगल, झाड़ नदारद।कमरे बिजली से रोशन हैं,ताखा, दियना, टांड़ नदारद।।चावल पकने लगा कुकर में, *बटलोई का मांड़ नदारद।* कौन चबाए चना-चबेना,भड़भूजे का भाड़ नदारद।।🤨🤨पक्के ईंटों वाले घर हैं,छप्पर और खपरैल नदारद।ट्रैक्टर से हो रही जुताई, *दरवाजे से बैल नदारद।।* महंगाई का वह आलम है,एक-पांच के नोट नदारद।।🤨🤨
Tuesday, 5 January 2021
Monday, 4 January 2021
Sunday, 3 January 2021
Saturday, 2 January 2021
?? ? माँ की इच्छा ? ??महीने बीत जाते हैं ,साल गुजर जाता है ,वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर ,मैं तेरी राह देखती हूँ।आँचल भीग जाता है ,मन खाली खाली रहता है ,तू कभी नहीं आता ,तेरा मनि आर्डर आता है।इस बार पैसे न भेज ,तू खुद आ जा ,बेटा मुझे अपने साथ ,अपने ? घर लेकर जा।तेरे पापा थे जब तक ,समय ठीक रहा कटते ,खुली आँखों से चले गए ,तुझे याद करते करते।अंत तक तुझको हर दिन ,बढ़िया बेटा कहते थे ,तेरे साहबपन का ,गुमान बहुत वो करते थे।मेरे ह्रदय में अपनी फोटो ,आकर तू देख जा ,बेटा मुझे अपने साथ ,अपने ? घर लेकर जा।अकाल के समय ,जन्म तेरा हुआ था ,तेरे दूध के लिए ,हमने चाय पीना छोड़ा था।वर्षों तक एक कपडे को ,धो धो कर पहना हमने ,पापा ने चिथड़े पहने ,पर तुझे स्कूल भेजा हमने।चाहे तो ये सारी बातें ,आसानी से तू भूल जा ,बेटा मुझे अपने साथ ,अपने ? घर लेकर जा।? घर के बर्तन मैं माँजूंगी ,झाडू पोछा मैं करूंगी ,खाना दोनों वक्त का ,सबके लिए बना दूँगी।नाती नातिन की देखभाल ,अच्छी तरह करूंगी मैं ,घबरा मत, उनकी दादी हूँ ,ऐंसा नहीं कहूँगी मैं।तेरे ? घर की नौकरानी ,ही समझ मुझे ले जा ,बेटा मुझे अपने साथ ,अपने ? घर लेकर जा।आँखें मेरी थक गईं ,प्राण अधर में अटका है ,तेरे बिना जीवन जीना ,अब मुश्किल लगता है।कैसे मैं तुझे भुला दूँ ,तुझसे तो मैं माँ हुई ,बता ऐ मेरे कुलभूषण ,अनाथ मैं कैसे हुई ?अब आ जा तू मेरी कब्र पर ,एक बार तो माँ कह जा ,हो सके तो जाते जाते ,वृद्धाश्रम गिराता जा।?????????
Friday, 1 January 2021
हवाएँ हो गई है सर्द..आओ धूप में कुछ पलबिता लेंकहें कुछ अपने मन कीरिश्तों पर जमी बर्फपिघला लें ।।चटक से तोड़ें मूंगफलीफैलायें छिलके छत परकुछ दाने खा लें ।।अवसाद भरेजीवन की दौड़ धूप मेंथक से गये होकुछ देर सुस्ता लें।।बातों के तिल काताड़ नहीतिल में थोड़ा गुड़ मिला लेंखाएं गजकवाणी में थोड़ीमिठास बना लें ।।व्यवहार की चादर मेंअहम की सीलन हैदबी रजाई मेंईर्ष्या की दुर्गन्ध हैइन्हें खोलें..ज़राधूप लगा लें ।।... हवाएँ हो गई है सर्दआओ धूप में कुछ पलबिता लें।
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