राम के भक्त कहाँ, बंदा-ए-रहमान कहाँतू भी हिन्दू है कहाँ, मैं भी मुसलमान कहाँतेरे हाथों में भी तिरशूल है गीता की जगहमेरे हाथों में भी तलवार है क़ुरआन कहाँतू मुझे दोष दे, मैं तुझ पे लगाऊं इलज़ामऐसे आलम में भला अम्न का इमकान कहाँअब तो शहरों के गली-कूचों में खूँ बहता हैपानीपत और पिलासी का वो मैदान कहाँकिसी मस्जिद का है गुंबद कि कलश मंदिर काइक थके-हारे परिंदे को ये पहचान कहाँ..!