राजा को बड़ा गुमान था अपने दरबारियों पर ! पर चुन चुन कर इकट्ठे किये गये उसके ये दरबारी दावते उड़ा उड़ा कर काहिल और निकम्मे हो चुके थे ! चूँकि वो जानते थे कि उनके ऐशोआराम राजा की ही बदौलत है इसलिये राजा की तारीफ़ में दिन रात एक किये रहते ! और तारीफ़े सुन सुनकर राजा को भी ये इत्मिनान हो गया कि उससे ज़्यादा बेहतरीन राजा इस ज़मीन पर अब तक ना कोई हुआ है ना आगे होगा ! पर जैसा कि हर राजा की कहानी में होता है ,उसे सही सलाह देने वाला एक ना एक आदमी तो उसके आसपास होता ही है ! ऐसा ही एक आदमी इस राजा के पास भी था जो सच बोलना जानता था ! अब इस सच बोलने वाले आदमी ने इस सारे मामले से ऊब कर राजा को बताया कि आजकल राज में जो चल रहा है उसपर उसे आँख मूँद कर भरोसा नही करना चाहिये ! और उसके आसपास इकट्ठे लोग उसकी आरती केवल इसलिये उतारते है क्योंकि वो पेट पर लात नहीं खाना चाहते !राजा एकदम से तो नहीं माना पर माना ! उसने अपने दरबारियों की असलियत जानने के लिये एक उपाय सोचा और प्लान के तहत एक गधा ख़रीदा और उसे एक ख़ास अस्तबल में रखा ! उसके बारे में अपने दरबारियों को बताया कि उसने अरबी नस्ल का ख़ास घोड़ा ख़रीदा है और मैं चाहता हूँ आप उसे देखे और लौट कर उसके बारे में मुझे अपनी राय बताये ! अगले दिन फिर दरबार सज़ा ! और दरबारियों ने देखे गये गधे के बारे में अपनी राय ज़ाहिर करना शुरू की !हुज़ूर क्या घोड़ा है ! कुछ मत पूछिये !एक ने कहा क्या आँखें है उसकी माधुरी दीक्षित को मात करती है इसकी आँखें !दूसरा बोला ! क्या टाँगे है उसकी हुज़ूर ! मिल्खा सिंह देखे तो शरमा जाये ! तीसरे ने कहा ! उसकी पीठ तो ऐसी है कि उसके आगे रॉल्स रायस की सीटें बेकार है ! फिर तो चेहरे की ,कानों की ,ओठो की ,पेट की ,पूँछ की यहाँ तक गधे के दिमाग की भी तारीफ़े हुई ! तारीफ़ करने वालों के बीच होड़ लग गई ! राजा के गधे को घोड़ों का राजा बताया गया ! राजा अंदर से हिल गया कि ये ख़ुशामदी नमूने इकट्ठे कर वो कितनी बडी नादानी कर बैठा है ! पर राजा को अभी भी पूरी तसल्ली हुई नहीं थी इसलिये उसने सच बोलने वाले के कहने पर उस गधे की सवारी करना शुरू कर दी ! राजा गधे पर था तो दरबारियों की क्या मजाल कि वो घोड़ों पर चढ़ते ! पूरे राज्य में गधो ने घोड़ों की जगह ले ली ! गधे घोड़ों से मंहगे हो गये ! घोडे मारे मारे फिरने लगे ! ऐसे लोग जो घोड़ों पर चढ़ते थे उनका मज़ाक़ बनने लगा ! कुछ समझदारों ने लोगों को गधो और घोड़ों के बीच अंतर की बात समझानी भी चाही पर वो गिनती में इतने कम थे कि भीड़ के शोर में उनकी आवाज़ दब गई ! पर राजा तो अपने गधे की असलियत जानता था ! और अब गधे की वजह से अपने दरबारियों का गधापन भी उसके सामने था ! ऐसे में राजा दुखी हुआ उसने सच बोलने वाले को बुलाया ! अपनी ग़लती मंज़ूर की ! और पूछा ! कि क्या हमारे राज में सारे गधे ही बसते है ! सच बोलने वाले ने उसे ढाढ़स बँधाया ! बताया ऐसा है नहीं पर चूँकि बहुमत गधो का ही है इसलिये ऐसा गधापन चल जाना कोई बड़ी बात नहीं ! राजा ने कहा ! ऐसे मे क्या किया जाये ! क्या मैं अपनी झूठी तारीफ़ करने वाले इन दरबारियों का मुँह काला कर दूँ !सच बोलने वाले ने कहा ! ऐसा करके फिर ग़लती करेंगे आप ! दरबारी इसलिये नहीं होते कि वो प्रशासन चलाने में आपकी मदद करे ! दरबारियों का काम हमेशा से राजा की हाँ में हाँ मिलाने का ही तय है और ये अपना काम बहुत अच्छे तरीक़े से कर रहे है ! पर कुछ लोग तो तुम्हारे जैसे मिल ही जायेगे मुझे ! आपको ऐसी ग़लती करना नही चाहिये ! सच बोलने वालो के पास अपना दिमाग होता है ! वे अच्छे प्रशासक भले हो पर जल्दी ही वे राजा के गधे मे दोष ढूँढने लगेंगे ,और राजा की भलाई इसी मे है कि ऐसे लोगो से दूर रहे जो उसके गधे को गधा कहते हो !