Friday, 21 May 2021

"डर......आधी रात में मां की नींद खुल गई थी और बेटे को बहू के कमरे की बजाय अपने बिस्तर पर बच्चों की तरह आड़ा-तिरछा लेटा हुआ पाकर आज फिर उसका दिल आशंकाओं से भर उठा था....बेटे के सर के नीचे एक तकिया लगा उसके माथे को सहलाते हुए वह धीरे से बुदबुदाई -अब तू कुछ परेशान सा रहता है....नहीं मां....शायद मां के स्पर्श से बेटे की कच्ची नींद भी खुल गई थी और वह करवट ले मां के करीब आ गया था...पिछले महीने पति के गुजर जाने के बाद अब उसे भी गहरी नींद कहां आती थी..रातें तो यूंही आंखें मूंद हल्की झपकियों में ही कट रही थी ऊपर से बेटे की यह बेचैनी...आजकल जाने कब तू मेरे बिस्तर पर आकर सो जाता है। बहू से नाराज है क्या....नहीं मां.... किसी अबोध की तरह मां से लिपटने की कोशिश करता इस सवाल को भी वह टाल गया...मां ने वही बिस्तर से सटे मेज पर रखें तांबे के लोटे से एक घूंट पानी पीकर लोटा वापस मेज पर रख दिया था और बिस्तर पर लेटने की बजाय एक तकिए का सहारा ले दीवार से अपनी पीठ टिका बैठ गई थी..."फिर क्या बात है बेटा...कुछ भी नही मां... मां की गोद को छोटे बच्चों की तरह बाहों में भरने की कोशिश करता वह उसके हर सवाल को खारिज कर गया था...बेटा ....बता ना... तेरी बेचैनी देख मेरा दिल घबराता है...उसने बेटे का सर अपनी गोद में रख लिया था।मां की घबराहट महसूस कर बेटे ने अब खुद सोने या मां के सो जाने का इंतजार करना छोड़ पीठ के बल लेट मां के दोनों हाथ अपने हाथों में ले अपने सीने पर रख लिया था..."मां.... आपको याद है, जब मैं बड़ा हो रहा था। पापा ने मेरा कमरा अलग कर दिया था..."अपने लिए अलग कमरे की जिद्द भी तो तूने ही की थी मां ने उसे याद दिलाया था..."हां....लेकिन तब आप मेरे सो जाने के बाद उस कमरे में आकर मेरे माथे को सहलाती अक्सर मेरे बिस्तर पर ही सो जाया करती थी...."और सुबह मुझे अपने बिस्तर पर पाकर तू अक्सर मुझसे एक सवाल पूछा करता था... याद है...सोई गहरी रात में मां-बेटे भूली-बिसरी बातें याद कर रहे थे..."हां.... याद है..."अच्छा...तो बता क्या पूछता था... सुबह की कहीं कितनी ही बातों को शाम तक भूल जाने वाले बेटे को बरसों पुरानी वह बात कहां याद होगी.. यह सोच मां मुस्कुराई थी..."यही की.... क्या आप पापा से नाराज हो....बेटे की अद्भुत यादाश्त क्षमता से रूबरू होती मां का निस्तेज होता चेहरा अचानक एक अद्भुत मुस्कान के साथ कमरे की मदीम रोशनी में भी जगमगा उठा...हां ....पर बेटा....तुझे ऐसा क्यों लगता था....आज वर्षो बाद शायद मां भी शिद्दत से बेटे के मन की उस बात को जान लेना चाहती थी जिसे जानने की फुर्सत उसे आज से पहले कभी नहीं मिली..."क्योंकि मैं आपको हमेशा पापा के साथ देखना चाहता था....पिता को याद करते हुए बेटे ने अपने सीने पर रखे मां के दोनों हाथों पर अपनी पकड़ मजबूत की थी...."बेटा.... मैं भी तुम्हें हमेशा बहू के साथ देखना चाहती हूं...मां ने झुक कर बेटे का माथा चूमकर कहा..."मां.... तब आप पापा को कमरे में अकेला छोड़ मेरे पास क्यों आ जाती थी....बरसों बाद बेटा भी अपने मन की जिज्ञासा मां के सामने रख रहा था..."बेटा...डर लगता था कि अकेले कमरे में कहीं तू डर ना जाए...."मां.... अब जब पापा नहीं रहे, मुझे भी डर लगता है..."क्यों बेटा..." मां अपने बेटे का "डर " जानने को अधीर हो उठी ...."कहीं आप अपने अकेलेपन से डर ना जाओ...इसलिए मैं .....इसके आगे वह कुछ कह ही नहीं पाया, मां-बेटा एक दूजे से लिपट गए थे और सारे शब्द आंसुओं में बह गए थे....🙏🙏🙏