शादी के तीसरे दिन ही, बीएड का इम्तेहान देने जाना था उसे। रात भर ठीक से सो भी नहीं पायी थी। किताब के पन्नों को पलटते हुए कब सुबह हुई पता भी नहीं चला। हल्का उजाला हुआ तो रितु जगाने के लिए आ गयी। बहुत मेहमान थे, तो सबके जागने से पहले ही दुल्हन नहा ले। नहीं तो फिर आंगन में भीड़ बढ़ जाएगी। सबके सामने गीले बाल, सिर पर पल्लू लिए बिना थोड़े निकलेगी। नहा कर अपने कमरे में बैठ कर फिर किताब में खो गयी। मुँह-दिखाई के लिए दो-चार औरतें आयी थी। सब मुँह देख कर हाथों में मुड़े-तुड़े कुछ पचास के नोट और सिक्के दे कर वहीं पर बैठ गयीं ।घड़ी में देखा तो साढ़े आठ बज़ रहे थे।नौ बजे निकलना था। तैयार होने के लिए आईने के सामने साड़ी ले कर खड़ी हो गयी। चार-पाँच बार बांधने की कोशिश की मगर ऊपर-नीचे होते हुए वो बंध न पायी। साड़ी पकड़ कर रुआंसी सी हो कर बैठ गयी। "जीजी को बोला था शादी नहीं करो मेरी अभी। इम्तेहान दे देने दो। मेरा साल बर्बाद हो जायेगा मगर मेरी एक न सुनी। नौकरी वाला दूल्हा मिला नहीं की बोझ समझ कर मुझे भेज दिया।" आंसू पोछतें हुए बुदबुदा रही थी।"तैयार नहीं हुई। बाहर गाड़ी आ गयी है। जल्दी करो न।" दूल्हे साहब कमरे में आते हुए बोले। वो चुप-चाप बिना कुछ बोले साड़ी लपेटने लगी। इतने में पीछे से सासु माँ कमरे में कुछ लेने आयी। दुल्हन को यूँ साड़ी लिए खड़ी देख कर माज़रा समझ में आ गया।वो कमरे से बाहर आ कर रितु को आवाज़ लगा कर कुछ लाने को बोली।"सुनो बेटा ये पहन कर जाओ परीक्षा देने,माथे पर ओढनी रख लेना आज हमें कोई कुछ बोलेगा तो कल को तुम मास्टरनी बन जाओगी तो सबका मुह बन्द हो जाएगा ।" अपनी बेटी वाला सूट-सलवार बहु को देते हुए बोली। उसने भीगी नज़रों से सास को देखा।सासु माँ सिर पर हाथ फेरते हुए कमरे से निकल गई,,!!