Thursday, 10 June 2021

"बेटा.....भाभी.... भाभी....बाइक खडी करते हुए मोहन दरवाजे पर खडे होकर बोला...आई भैया....... सुमित्रा दरवाजे की ओर बढते हुए बोली...आ गए आप मोहन भैया ....आप मुंह हाथ धो लीजिए मे खाना लगाती हूं ......तकरीबन दो ढाई बजे प्रतिदिन की तरह दोपहर में खाना खाने फैक्ट्री से मोहन आया था ....मां बाबूजी ....कहा है भाभी....वो बुआजी आई थी परिवार सहित ...बस अभी थोड़ी देर पहले ही गई है मां बाबूजी अपने कमरे में आराम करने गए है आप बैठिए मे खाना लगाती हूं कहकर सुमित्रा रसोईघर में चली गई ....रसोई में मोहन की थाली सजाते सुमित्रा ने जैसे ही कडाही से प्लेट हटाई बमुश्किल उसमें एक कटोरी कटहल की सब्जी बची थी .....कितना पसंद है मोहन भैया को कटहल ....बडे चाव से खाते हैं कल कितने अरमानों के साथ लाए थे ...भाभी आपके हाथों से बना कटहल ....वाह....अलग ही स्वादिष्ट बनाती हो आप ....दोपहर शाम दोनों वक्त खुशी से खा लेते है मगर ....बुआजी परिवार सहित आई थी अतिथि भगवान रूप में आते हैं उन्हें भी कटहल बेहद स्वाद लगा और ....अब केवल कडाही मे एक कटोरी मात्र बचा है ...खैर मां बाबूजी सभी ने खा लिया मे और मोहन भैया ही खाना खाने से बचे है ....एक काम करती हूं उन्हें ये कटोरी भरकर दे देती हूं मे उनके फैक्ट्री वापस जाने के बाद चाय के साथ रोटियों पर नमक लगाकर खा लूंगी ...तभी ऊहह....ऊहहहह.....अरे लगता है मुन्ना उठ गया ....ऐसे ही सो गया था जरूर भूख लगी होगी ....प्लेट हाथों में लिए सुमित्रा बाहर की ओर आई....मोहन भैया आप खाइए ...और रोटियां डिब्बे में है पानी ले लेना मुन्ना भूखा है मे उसे दूध पिलाकर आती हूं ....जी भाभी....मोहन बोला....थोड़ी देर में मोहन ने आवाज लगाई ....भाभी मैने खा लिया मे जा रहा हूं दरवाजा बंद कर लीजिएठीक है भैया ...सुमित्रा बोली और बाहर आकर दरवाजा बंद करके रसोईघर में बर्तनों को समेटने चली गई जैसे ही उसने कडाही उठाई तो देखा उसमें कटहल की सब्जी लगभग उतनी ही पडी थी जितनी उसने मोहन को कटोरी में डालकर दी थी इससे पहले वो कुछ समझती उसकी नजर रोटियों के डिब्बे के ऊपर गई जिसपर एक कागज पडा था कुछ लिखा हुआ सा....ये कया है .....सुमित्रा ने कागज उठाते हुए कहा....भाभी.....जानती हो मां के बाद भाभी को मां कयो कहा जाता है कयोंकि वो आपकी तरह ममतामयी होती हैं उसमें मातृत्व होता है जानता हूं बुआजी परिवार सहित आई होगी तो सब्जी भी उसीप्रकार से लग गई होगी और आखिर में आप और मे ही बचते हैं खाने के लिए ....आखिरी बची कटहल की कटोरी आपने अपने इस बेटे के लिए रख दी ताकि वह सुकून से भरपेट खा ले ....भाभी मुन्ना रोया तो आपको उसके भूखे होने की खबर हो गई वैसे ही आपने मेरे लिए..... जब एक मां अपने बच्चों की भूख की परवाह करती हैं तो कया उन बच्चों का फर्ज नही बनता वो भी अपनी मां को भूखा ना रहने दे .....जिस हक से एक मां ने अपने बडे बेटे के लिए खाना रखा है उसी हक से एक बेटे ने अपनी मां के लिए खाना रखा है ....खा लीजिएगा ......एक बेटे की विनती है..... कागज पढ रही सुमित्रा की आँखें भीगी हुई जरूर थी मगर चेहरे पर एक प्यारी सी सुकून भरी हंसी भी थी ...और मुंह से यही शब्द निकल रहे थे मेरा बेटा....एक सुंदर रचना...