बचपन मे जब भी कोई पूछता था,कितने भाई बहिन है,जोडने लगते थे हम सभी ,,,जल्दी जल्दी,,नन्ही नन्ही उंगलियों पे,,उंगलियाँ खत्म हो जाती,जोड़ नही क्योकिकज़िन क्या होता है ,,,पता ही नही था।माँ ने कहाये तेरे बडे भाई है ये छोटी बहन,,बस ,,हो गए हम ढेर सारे,गर्मी की छुट्टियाँ,कब आती,कब बीत जातीपता ही नही था।जब भूख लगे ,जिस घर के बाहर खेलते उसी मे घुस जाते ,वे अपने ना थे ,पता ही ना था।चाची,ताई,मासी,बुआ,ना जाने कितने अपने लोग ,कितने प्यारे रिश्ते,,एक ही टोकरी मे सजे अलग अलग फूलों की भाँति ,उतना ही अपना पन ,,उतनी ही डाँट,,परायापन क्या होता है पता ही ना था।बड़े हुए तब सुने ,,,अपने परायों के किस्से,,पर मन,वो तो रंग चुका था ,,प्यार और अपनेपन के उन रंगो मे ,जो कभी नही छूटता ,बंध चुका था उन रिश्तों की अदृश्य डोरियों मे ,जो कभी नही टूटता ।लगभग तीन चार दशको बाद ,आज,जब जीने चलेफिरसे उन पलों को ,तो इतना सुखद अहसास,,आज भी सभी,मेरे जैसे ही ,खड़े है उसी मोड पर ,एक दूसरे का इंतजार करते ,उन यादो को मुट्ठियों मे थामे खोलते उडाते से,,रंग-बिरंगी यादो की तितलियाँ,,और उन्हे पकडते हम सभी उल्लास और आन्नद से भरे हुए,सच है ,बचपन वापस तो नही लौटता ,,पर जिया जा सकता है ,उन यादों को,फिर से एकबार।ये भी सच है,,, संजोये जा सकता है,फिर से एकबारउन रिश्तों को जो पीछे छूटे से जान पडते है ,,पर कभी नही टूटे ,,,दिल के करीब जो थे।"गुज़र गया आज का दिन भी यूँ ही बेवजह,न मुझे फुर्सत मिली न तुझे खयाल आया"🌞🌞🌞🙏🙏🙏🙏🙏 🌹🌹🌹🌹🙏🙏जब किसी में गुण दिखाई दे तो मन को " कैमरा " बना लीजिए और जब किसी में " अवगुण " दिखाई दे तो " मन " को "आईना " बना लीजिए......!!🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹